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गो-दान
 

आज ही रात को गोबर ने लखनऊ लौट जाने का निश्चय कर लिया। यहाँ अब वह नहीं रह सकता। जब घर में उसकी कोई पूछ नहीं है,तो वह क्यों रहे। वह लेन-देन के मामले में बोल नहीं सकता। लड़कियों को जरा मार दिया तो लोग ऐसे जामे के बाहर हो गये,मानो वह वाहर का आदमी है। तो इस सराय में वह न रहेगा।

दोनों भोजन करके बाहर आये थे कि नोखेराम के प्यादे ने आकर कहा-चलो,कारिन्दा साहब ने बुलाया है।

होरी ने गर्व से कहा--रात को क्यों बुलाते हैं,मैं तो बाकी दे चुका हूँ।

प्यादा बोला-मुझे तो तुम्हें बुलाने का हुक्म मिला है। जो कुछ अरज करना हो,वहीं चलकर करना।

होरी की इच्छा न थी,मगर जाना पड़ा;गोबर विरक्त-सा बैठा रहा। आध घण्टे में होरी लौटा और चिलम भर कर पीने लगा। अब गोवर से न रहा गया। पूछाकिस मतलब से बुलाया था?

होरी ने भर्राई हुई आवाज में कहा--मैंने पाई-पाई लगान चुका दिया। वह कहते हैं,तुम्हारे ऊपर दो साल की बाकी है। अभी उस दिन मैंने ऊख वेची,पचीस रुपए वहीं उनको दे दिये,और आज वह दो साल का बाकी निकालते हैं। मैंने कह दिया,मैं एक धेला न दूंगा।

गोवर ने पूछा--तुम्हारे पास रसीद तो होगी?

'रसीद कहाँ देते हैं?'

'तो तुम बिना रसीद लिए रुपये देते ही क्यों हो?'

'मैं क्या जानता था,वह लोग बेईमानी करेंगे। यह सब तुम्हारी करनी का फल है। तुमने रात को उनकी हँसी उड़ाई,यह उसी का दण्ड है। पानी में रह कर मगर से बैर नहीं किया जाता। सूद लगाकर सत्तर रुपए बाकी निकाल दिये। ये किसके घर से आयेंगे?'

गोबर ने अपनी सफाई देते हुए कहा--तुमने रसीद ले ली होती तो मैं लाख उनकी हँसी उड़ाता,तुम्हारा बाल भी वाँका न कर सकते। मेरी समझ में नहीं आता कि लेन-देन में तुम सावधानी से वयों काम नहीं लेते। यों रसीद नहीं देते,तो डाक से रुपया भेजो। यही तो होगा,एकाध रुपया महमूल पड़ जायगा। इस तरह की धाँधली तो न होगी।

'तुमने यह आग न लगाई होती,तो कुछ न होता। अब तो सभी मुखिया बिगड़े हुए हैं। बेदखली की धमकी दे रहे हैं,दैव जाने कैसे बेड़ा पार लगेगा!'

'मैं जाकर उनमे पूछता हूँ।'

'तुम जाकर और आग लगा दोगे।'

'अगर आग लगानी पड़ेगी,तो आग भी लगा दूंगा। वह बेदखली करते हैं,करें। मैं उनके हाथ में गंगाजली रखकर अदालत में कसम खिलाऊँगा। तुम दुम दबाकर बैठे रहो। मैं इसके पीछे जान लड़ा दूंगा। मैं किसी का एक पैसा दबाना नहीं चाहता,न अपना एक पैसा खोना चाहता हूँ।'