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पृष्ठ:गो-दान.djvu/२२७

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गो-दान
२२७
 

वह उसी वक्त उठा और नोखेराम की चौपाल में जा पहुँचा। देखा तो सभी मुखिया लोगों का कैबिनेट बैठा हुआ है। गोबर को देखकर सब के सब सतर्क हो गये। वातावरण में पड्यन्त्र की-सी कुण्ठा भरी हुई थी।

गोबर ने उत्तेजित कण्ठ से पूछा--यह क्या बात है कारिन्दा साहब,कि आपको दादा ने हाल तक का लगान चुकता कर दिया और आप अभी दो साल की बाकी निकाल रहे हैं। यह कैसा गोलमाल है?

नोखेराम ने मसनद पर लेटकर रोब दिखाते हुए कहा--जब तक होरी है,मैं तुमसे लेन-देन की कोई बातचीत नहीं करना चाहता।

गोबर ने आहत स्वर में कहा--तो मैं घर में कुछ नहीं हूँ?

'तुम अपने घर में सब कुछ होगे। यहाँ तुम कुछ नहीं हो।'

'अच्छी बात है,आप बेदखली दायर कीजिए। मैं अदालत में तुम से गंगाजली उठाकर रुपये दूंँगा;इसी गाँव से एक सौ सहादतें दिलाकर साबित कर दूंँगा कि तुम रसीद नहीं देते। सीधे-साधे किसान हैं,कुछ बोलते नहीं,तो तुमने समझ लिया कि सब काठ के उल्लू हैं। राय साहब वहीं रहते हैं,जहाँ मैं रहता हूँ। गाँव के सब लोग उन्हें हौवा समझते होंगे,मैं नहीं समझता। रत्ती-रत्ती हाल कहूँगा और देलूंँगा तुम कैसे मुझ से दोबारा रुपए वसूल कर लेते हो।'

उसकी वाणी में सत्य का बल था। डरपोक प्राणियों में सत्य भी गंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है,मिट्टी पर चढ़ा दिया जाय,तो मिट्टी हो जायगा। गोबर की निर्भीक स्पष्टवादिता ने उस अनीत के बख्तर को बेध डाला जिससे सज्जित होकर नोखेराम की दुर्बल आत्मा अपने को शक्तिमान् समझ रही थी।

नोखेराम ने जैसे कुछ याद करने का प्रयास करके कहा--तुम इतना गर्म क्यों हो रहे हो,इसमें गर्म होने की कौन बात है। अगर होरी ने रुपए दिये हैं,तो कहीं-न-कहीं तो टाँके गये होंगे। मैं कल कागज निकालकर देनूंँगा। अब मुझे कुछ-कुछ याद आ रहा है कि शायद होरी ने रुपये दिये थे। तुम निसाखातिर रहो;अगर रुपए यहाँ आ गये हैं,तो कहीं जा नहीं सकते। तुम थोड़े-से रुपये के लिए झूठ थोड़े ही बोलोगे और न मैं ही इन रुपयों से धनी हो जाऊँगा।

गोबर ने चौपाल से आकर होरी को ऐसा लथाड़ा कि बेचारा स्वार्थ-भीरु बूढ़ा रुआँसा हो गया--तुम तो बच्चों से भी गये-बीते हो जो बिल्ली की म्याऊँ सुनकर चिल्ला उठते हैं। कहाँ-कहाँ तुम्हारी रच्छा करता फिरूंँगा। मैं तुम्हें सत्तर रुपये दिये जाता हूँ। दातादीन ले तो देकर भरपाई लिखा देना। इसके ऊपर तुमने एक पैसा भी दिया तो फिर मुझसे एक पैसा भी न पाओगे। मैं परदेश में इसलिए नहीं पड़ा हूँ कि तुम अपने को लुटवाते रहो और मैं कमाकर भरता रहूँ,मैं कल चला जाऊँगा;लेकिन इतना कहे देता हूँ,किसी से एक पैसा उधार मत लेना और किसी को कुछ मत देना। मैंगरू,दुलारी,दातादीन--सभी से एक रुपया सैकड़े सूद कराना होगा।

साँचा:Gpaधनिया भी खाना खाकर बाहर निकल आयी। बोली--अभी क्यों जाते हो बेटा,