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गो-दान
२२९
 


क्या रस रह गया। जिस नौका पर बैठकर इस जीवन-सागर को पार करना चाहती थी,वही टूट गयी,तो किस सुख के लिये जिये!

लेकिन नहीं। उसका गोबर इतना स्वार्थी नहीं है। उसने कभी माँ की बात का जवाब नहीं दिया,कभी किसी बात के लिए जिद नहीं की। जो कुछ रूखा-सूखा मिल गया,वही खा लेता था। वही भोला-भाला शील-स्नेह का पुतला आज क्यों ऐसी दिल तोड़नेवाली बातें कर रहा है? उसकी इच्छा के विरुद्ध तो किसी ने कुछ नहीं कहा। माँ-बाप दोनों ही उसका मुंँह जोहते रहते हैं। उसने खुद ही लेन-देन की बात चलायी;नही उससे कौन कहता है कि तू माँ-बाप का देना चुका। माँ-बाप के लिए यही क्या कम सुख है कि वह इज्जत-आबरू के साथ भलेमानसों की तरह कमाता-खाता है। उससे कुछ हो सके,तो माँ-बाप की मदद कर दे। नहीं हो सकता तो माँ-बाप उसका गला न दबायेंगे) झुनिया को ले जाना चाहता है,खुशी से ले जाय। धनिया ने तो केवल उसकी भलाई के खयाल से कहा था कि झुनिया को वहाँ ले जाने में उसे जितना आराम मिलेगा उससे कहीं ज्यादा झंझट बढ़ जायगा। उसमें ऐसी कौन-सी लगनेवाली बात थी कि वह इतना बिगड़ उठा। हो न हो,यह आग झुनिया ने लगाई है। वही बैठे-बैठे उसे मन्तर पढ़ा रही है। यहाँ सौक-सिंगार करने को नहीं मिलता;घर का कुछ न कुछ काम भी करना ही पड़ता है। वहाँ रुपए-पैसे हाथ में आयेंगे,मजे से चिकना खायगी,चिकना पहनेगी और टाँग फैलाकर सोयेगी। दो आदमियों की रोटी पकाने में क्या लगता है,वहाँ तो पैसा चाहिए। सुना,बाजार में पकी-पकाई रोटियांँ मिल जाती हैं। यह सारा उपद्रव उसी ने खड़ा किया है,सहर में कुछ दिन रह भी चुकी है। वहाँ का दाना-पानी मुँह लगा हुआ है। यहाँ कोई पूछता न था। यह भोंदू मिल गया। इसे फाँस लिया। जब यहाँ पाँच महीने का पेट लेकर आयी थी,तव कैसी म्याँव-म्याँव करती थी। तब यहाँ सरन न मिली होती,तो आज कहीं भीख माँगती होती। यह उसी नेकी का बदला है! इसी चुडै़ल के पीछे डाँड़ देना पड़ा,बिरादरी में बदनामी हुई,खेती टूट गयी,सारी दुर्गत हो गयी। और आज यह चुडैल जिस पत्तल में खाती है,उसी में छेद कर रही है। पैसे देखे,तो आँख हो गयी। तभी ऐंठी-ऐंटी फिरती है,मिजाज नहीं मिलता। आज लड़का चार पैसे कमाने लगा है न। इतने दिनों बात नहीं पूछी,तो सास का पाँव दबाने के लिए तेल लिए दौड़ती थी। डाइन उसके जीवन की निधि को उसके हाथ से छीन लेना चाहती है।

दुखित स्वर में बोली--यह मन्तर तुम्हें कौन दे रहा है बेटा,तुम तो ऐसे न थे। माँ-बाप तुम्हारे ही हैं,बहनें तुम्हारी ही हैं,घर तुम्हारा ही है। यहाँ बाहर का कौन है। और हम क्या बहुत दिन बैठे रहेंगे? घर की मरजाद बनाये रहोगे,तो तुम्हीं को सुख होगा। (आदमी घरवालों ही के लिए धन कमाता है कि और किसी के लिए? अपना पेट तो सुअर भी पाल लेता है।) मैं न जानती थी,झुनिया नागिन बनकर हमी को डसेगी।

गोबर ने तिनककर कहा--अम्मा,नादान नहीं हूँ कि झुनिया मुझे मन्तर पढ़ायेगी।