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गो-दान
 


तुम उसे नाहक कोस रही हो। तुम्हारी गिरस्ती का सारा बोझ मैं नहीं उठा सकता। मुझ से जो कुछ हो सकेगा,तुम्हारी मदद कर दूंँगा;लेकिन अपने पाँवों में बेड़ियाँ नहीं डाल सकता।

झुनिया भी कोठरी से निकलकर बोली--अम्माँ,जुलाहे का गुस्सा डाढ़ी पर न उतारो। कोई बच्चा नहीं है कि उन्हें फोड़ लूंँगी। अपना-अपना भला-बुरा सब समझते हैं। आदमी इसीलिए नहीं जन्म लेता कि सारी उम्र तपस्या करता रहे,और एक दिन खाली हाथ मर जाय। सब जिंदगी का कुछ सुख चाहते हैं,सब की लालसा होती है के हाथ में चार पैसे हों।

धनिया ने दाँत पीसकर कहा--अच्छा झुनियाँ,बहुत ज्ञान न बघार। अब तू भी अपना भला-बुरा सोचने योग हो गयी है। जब यहाँ आकर मेरे पैरों पर सिर रक्खे रो रही थी,तब अपना भला-बुरा नहीं सूझा था? उस घड़ी हम भी अपना भला-बुरा सोचने लगते,तो आज तेरा कहीं पता न होता।

इसके बाद संग्राम छिड़ गया। ताने-मेहने,गाली-गलौज, थुक्का-फजीहत,कोई बात न बची। गोबर भी चीच-बीच में डंक मारता जाता था। होरी बरौठे में बैठा सब कुछ सुन रहा था। सोना और रूपा आँगन में सिर झुकाये खड़ी थीं;दुलारी,पुनिया और कई स्त्रियाँ बीच-बचाव करने आ पहुंँची थीं। गरजन के बीच में कभी-कभी बूंँदें भी गिर जाती थीं। दोनों ही अपने-अपने भाग्य को रो रही थीं। दोनों ही ईश्वर को कोस रही थीं,और दोनों अपनी-अपनी निर्दोपिता सिद्ध कर रही थीं। झुनिया गड़े मुर्दे उखाड़ रही थी। आज उसे हीरा और शोभा से विशेष सहानुभूति हो गयी थी,जिन्हें धनिया ने कहीं का न रखा था। धनिया की आज तक किसी से न पटी,तो झुनिया से कैसे पट सकती है। धनिया अपनी सफाई देने की चेप्टा कर रही थी,लेकिन न जाने क्या बात थी कि जनमत झुनिया की ओर था। शायद इसलिए कि झुनिया संयम हाथ से न जाने देती थी और धनिया आपे से बाहर थी। शायद इसलिए कि झुनिया अब कमाऊ पुरुष की स्त्री थी और उसे प्रसन्न रखने में ज्यादा मसलहत थी।

तब होरी ने आँगन में आकर कहा--मैं तेरे पैरों पड़ता हूँ धनिया,चुप रह। मेरे मुंँह में कालिख मत लगा। हाँ,अभी मन न भरा हो तो और सुन।

धनिया फुंकार मारकर उधर दौड़ी--तुम भी मोटी डाल पकड़ने चले। मैं ही दोसी हूँ। वह तो मेरे ऊपर फूल बरसा रही है ?

संग्राम का क्षेत्र बदल गया।

'जो छोटों के मुंँह लगे,वह छोटा।'

धनिया किस तर्क से झुनिया को छोटा मान ले?

होरी ने व्यथित कंठ से कहा--अच्छा वह छोटी नहीं, बड़ी सही। जो आदमी नहीं रहना चाहता,क्या उसे बाँधकर रखेगी? माँ बाप का धरम है,लड़के को पाल-पोसकर बड़ा कर देना। वह हम कर चुके। उनके हाथ-पाँव हो गये। अब तू क्या चाहती है,वे दाना-चारा लाकर खिलायें। माँ-बाप का धरम सोलहो आना लड़कों के