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गो-दान
२३१
 


साथ है। लड़कों का माँ-बाप के साथ एक आना भी धरम नहीं है। जो जाता है उसे असीस देकर बिदा कर दे। हमारा भगवान मालिक है। जो कुछ भोगना बदा है,भोगेंगे। चालीस सात सैंतालीस साल इसी तरह रोते-धोते कट गये। दस-पाँच साल हैं, वह भी यों ही कट जायेंगे।

उधर गोबर जाने की तैयारी कर रहा था। इस घर का पानी भी उसके लिए हगम है। माता होकर जब उसे ऐसी-ऐसी बातें कहे,तो अब वह उसका मुंँह भी न देखेगा।

देखते ही देखते उसका बिस्तर बँध गया। झुनिया ने भी चुंँदरी पहन ली। मुन्नू भी टोप और फ्राक पहनकर राजा बन गया।

होरी ने आर्द्र कंठ से कहा--बेटा,तुमसे कुछ कहने का मुँह तो नहीं है। लेकिन कलेजा नहीं मानता। क्या जरा जाकर अपनी अभागिनी माता के पाँव छू लोगे,तो कुछ बुरा होगा? जिस माता की कोख से जनम लिया और जिसका रक्त पीकर पले हो, उसके साथ इतना भी नहीं कर सकते?

गोबर ने मुंँह फेरकर कहा--मैं उसे अपनी माता नहीं समझता।

होरी ने आँखों में आँसू लाकर कहा--जैसी तुम्हारी इच्छा। जहाँ रहो,सुखी रहो।

झुनिया ने सास के पास जाकर उसके चरणों को अंचल से छुआ। धनिया के मुंँह से असीस का एक शब्द भी न निकला। उसने आँख उठाकर देखा भी नहीं। गोबर बालक को गोद में लिए आगे-आगे था। झुनिया बिस्तर बगल में दबाये पीछे। एक चमार का लड़का सन्दूक लिये था। गाँव के कई स्त्री-पुरुष गोबर को पहुँचाने गाँव के बाहर तक आये।

और धनिया बैठी रो रही थी,जैसे कोई उसके हृदय को आरे से चीर रहा हो। उसका मातृत्व उस घर के समान हो रहा था,जिसमें आग लग गयी हो और सब कुछ भस्म हो गया हो। बैठकर रोने के लिए भी स्थान न बचा हो।


२२

इधर कुछ दिनों से राय साहब की कन्या के विवाह की बातचीत हो रही थी। उसके साथ ही एलेक्शन भी सिर पर आ पहुंँचा था;मगर इन सबों से आवश्यक उन्हें दीवानी में एक मुक़दमा दायर करना था जिसकी कोर्ट-फीस ही पचास हजार होती थी,ऊपर के खर्च अलग। राय साहब के साले जो अपनी रियासत के एकमात्र स्वामी थे,ऐन जवानी में मोटर लड़ जाने के कारण गत हो गये थे,और राय साहब अपने कुमार पुत्र की ओर से उस रियासत पर अधिकार पाने के लिए कानून की शरण लेना चाहते थे। उनके चचेरे सालों ने रियासत पर कब्जा जमा लिया था और राय साहब को उसमें से कोई हिस्सा देने पर तैयार न थे। राय साहब ने बहुत चाहा कि आपस में समझौता हो जाय और उनके चचेरे साले माकूल गुजारा लेकर हट जायें,यहाँ तक कि वह उस रियासत की आधी आमदनी छोड़ने पर तैयार थे;मगर सालों ने किसी तरह का समझौता स्वीकार न किया,और केवल लाठी के जोर से रियासत में तहसील-बसूल शुरू कर दी।