गो-दान | २३५ |
राय साहब ने विनम्र स्वर में कहा––मैं आपको झूठा नहीं समझता; लेकिन इतना जरूर समझता हूँ कि आप चाहते, तो मुआमला हो जाता।'
'तो आप का ख्याल है, मैंने समझौता नहीं होने दिया?'
'नहीं, यह मेरा मतलब नहीं है। मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि आप चाहते तो काम हो जाता और मैं इस झमेले में न पड़ता।'
मिस्टर तंखा ने घड़ी की तरफ़ देखकर कहा––तो राय साहब, अगर आप साफ़ कहलाना चाहते हैं, तो सुनिए––अगर आपने दस हजार का चेक मेरे हाथ में रख दिया होता, तो आज निश्चय एक लाख के स्वामी होते। आप शायद चाहते होंगे, जब आपको राजा साहब से रुपए मिल जाते, तो आप मुझे हज़ार-दो-हजार दे देते। तो मैं ऐसी कच्ची गोली नहीं खेलता। आप राजा साहब से रुपए लेकर तिजोरी में रखते और मुझे अँगूठा दिखा देते। फिर मैं आपका क्या बना लेता? बतलाइए? कहीं नालिश-फ़रियाद भी तो नहीं कर सकता था।
राय साहब ने आहत नेत्रों से देखा––आप मुझे इतना बेईमान समझते हैं?
तंखा ने कुरसी से उठते हुए कहा––इसे बेईमानी कौन समझता है। आजकल यही चतुराई है। कैसे दूसरों को उल्लू बनाया जा सके, यही सफल नीति है; और आप इसके आचार्य हैं।
राय साहब ने मुट्ठी बाँधकर कहा––मैं?
'जी हाँ, आप! पहले चुनाव में मैंने जी-जान से आपकी पैरवी की। आपने बड़ी मुश्किल से रो धो कर पाँच सौ रुपए दिये, दूसरे चुनाव में आपने एक सड़ी-सी टूटी-फूटी कार देकर अपना गला छुड़ाया। दूध का जला छाँछ भी फूंक-फूंलककर पीता है।'
वह कमरे से निकल गये और कार लाने का हुक्म दिया।
राय साहब का खून खौल रहा था। इस अशिष्टता की भी कोई हद है। एक तो घंटे-भर इन्तज़ार कराया और अब इतनी बेमुरौवती से पेश आकर उन्हें जबरदस्ती घर से निकाल रहा है। अगर उन्हें विश्वास होता कि वह मिस्टर तंखा को पटकनी दे सकते हैं, तो कभी न चूकते; मगर तंखा डील-डौल में उनसे सवाये थे। जब मिस्टर तंखा ने हार्न बजाया, तो वह भी आकर अपनी कार पर बैठे और सीधे मिस्टर खन्ना के पास पहुंँचे।
नौ बज रहे थे; मगर खन्ना साहब अभी तक मीठी नींद का आनन्द ले रहे थे। वह दो बजे रात के पहले कभी न सोते थे और नौ बजे तक सोना स्वाभाविक ही था। यहाँ भी राय साहब को आधा घंटा बैठना पड़ा; इसलिए जब कोई साढ़े नौ बजे मिस्टर खन्ना मुस्कराते हुए निकले तो राय साहब ने डाँट बताई––अच्छा! अब सरकार की नींद खुली है, साढ़े नौ बजे। रुपए जमा कर लिये हैं न, जभी यह बेफ़िक्री है। मेरी तरह ताल्लुकेदार होते, तो अब तक आप भी किसी द्वार पर खड़े होते। बैठे-बैठे सिर में चक्कर आ जाता।
मिस्टर खन्ना ने सिगरेट-केस उनकी तरफ़ बढ़ाते हुए प्रसन्न मुख से कहा––रात सोने में बड़ी देर हो गयी। इस वक्त किधर से आ रहे हैं?