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गो-दान
२३९
 


साँप में विष है,यह जानते हुए भी हम उसे दूध पिलाते हैं। तोते से ज्यादा निठुर जीव और कौन होगा;लेकिन केवल उसके रूप और वाणी पर मुग्ध होकर लोग उसे पालते हैं और सोने के पिंजरे में रखते हैं। मेरे लिए भी मालती उसी तोते के समान थी। अफ़सोस यही है कि मैं पहले क्यों न चेत गया। इसके पीछे मैंने अपने हज़ारों रुपए बरबाद कर दिये भाई साहब! जब उसका रुक्का पहुँचा,मैंने तुरन्त रुपए भेजे। मेरी कार आज भी उसकी सवारी में है। उसके पीछे मैंने अपना घर चौपट कर दिया भाई साहब! हृदय में जितना रस था,वह ऊसर की ओर इतने वेग से दौड़ा कि दूसरी तरफ़ का उद्यान बिलकुल सूखा रह गया। बरसों हो गये,मैंने गोविन्दी से दिल खोलकर बात भी नहीं की। उसकी सेवा और स्नेह और त्याग से मुझे उसी तरह अरुचि हो गयी थी,जैसे अजीर्ण के रोगी को मोहनभोग से हो जाती है। मालती मुझे उसी तरह नचाती थी,जैसे मदारी बन्दर को नचाता है ) और मैं खुशी से नाचता था। वह मेरा अपमान करती थी और मैं खुशी से हँसता था। वह मुझ पर शासन करती थी और मैं सिर झुकाता था। उसने मुझे कभी मुंह नहीं लगाया,यह मैं स्वीकार करता हूँ। उसने मुझे कभी प्रोत्साहन नहीं दिया,यह भी सत्य है,फिर भी मैं पतंग की भाँति उसके मुख-दीप पर प्राण देता था। और अब वह मुझसे शिष्टाचार का व्यवहार भी नहीं कर सकती! लेकिन भाई साहब! मैं कहे देता हूँ कि खन्ना चुप बैठनेवाला आदमी नहीं है। उसके पुरजे मेरे पास सुरक्षित हैं;मैं उससे एक-एक पाई वसूल कर लूंगा,और डाक्टर मेहता को तो मैं लखनऊ से निकालकर दम लंगा। उनका रहना यहाँ असम्भव कर दूंगा......

उसी वक्त हार्न की आवाज आयी और एक क्षण में मिस्टर मेहता आकर खड़े हो गये। गोरा चिट्टा रंग,स्वास्थ्य की लालिमा गालों पर चमकती हुई,नीची अचकन,चूड़ीदार पाजामा, सुनहली ऐनक। सौम्यता के देवता-से लगते थे।

खन्ना ने उठकर हाथ मिलाया-आइए मिस्टर मेहता, आप ही का ज़िक्र हो रहा था।

मेहता ने दोनों सज्जनों से हाथ मिलाकर कहा-बड़ी अच्छी साइत में घर से चला था कि आप दोनों साहबों से एक ही जगह भेंट हो गयी। आपने शायद पत्रों में देखा होगा,यहाँ महिलाओं के लिए एक व्यायामशाला का आयोजन हो रहा है। मिस मालती उस कमेटी की सभानेत्री हैं। अनुमान किया गया है कि शाला में दो लाख रुपए लगेंगे। नगर में उसकी कितनी ज़रूरत है,यह आप लोग मुझसे ज्यादा जानते हैं। मैं चाहता हूँ आप दोनों साहबों का नाम सबसे ऊपर हो। मिस मालती खुद आनेवाली थीं;पर आज उनके फ़ादर की तबियत अच्छी नहीं है,इसलिए न आ सकीं।

उन्होंने चन्दे की सूची राय साहब के हाथ में रख दी। पहला नाम राजा सूर्यप्रतापसिंह का था जिसके सामने पाँच हजार रुपए की रक़म थी। उसके बाद कुँवर दिग्विजयसिंह के तीन हजार रुपए थे। इसके बाद और कई रकमें इतनी या इससे कुछ कम थीं। मालती ने पाँच सौ रुपये दिये थे और डाक्टर मेहता ने एक हजार रुपए।