२४० | गो-दान |
राय साहब ने अप्रतिभ होकर कहा––कोई चालीस हज़ार तो आप लोगों ने फटकार लिये।
मेहता ने गर्व से कहा––यह सब आप लोगों की दया है। और यह केवल तीन घंटों का परिश्रम है। राजा सूर्यप्रतापसिंह ने शायद ही किसी सार्वजनिक कार्य में भाग लिया हो; पर आज तो उन्होंने बे-कहे-सुने चेक लिख दिया! देश में जागृति है। जनता किसी भी शुभ काम में सहयोग देने को तैयार है। केवल उसे विश्वास होना चाहिए कि उसके दान का सद्व्यय होगा। आपसे तो मुझे बड़ी आशा है, मिस्टर खन्ना!
खन्ना ने उपेक्षा-भाव से कहा––मैं ऐसे फ़जूल के कामों में नहीं पड़ता। न जाने आप लोग पच्छिम की गुलामी में कहाँ तक जायेंगे। यों ही महिलाओं को घर से अरुचि हो रही है। व्यायाम की धुन सवार हो गयी, तो वह कहीं की न रहेंगी। जो औरत घर का काम करती है, उसके लिए किसी व्यायाम की ज़रूरत नहीं। और जो घर का कोई काम नहीं करती और केवल भोग-विलास में रत है, उसके व्यायाम के लिए चन्दा देना मैं अधर्म समझता हूँ।
मेहता ज़रा भी निरुत्साह न हुए––ऐसी दशा में मैं आपसे कुछ माँगूंगा भी नहीं। जिस आयोजन में हमें विश्वास न हो उसमें किसी तरह की मदद देना वास्तव में अधर्म है। आप तो मिस्टर खन्ना से सहमत नहीं हैं राय साहब!
राय साहब गहरी चिन्ता में डूबे हुए थे। सूर्यप्रताप के पाँच हजार उन्हें हतोत्साह किये डालते थे। चौककर बोले––आपने मुझसे कुछ कहा?
'मैंने कहा, आप तो इस आयोजन में सहयोग देना अधर्म नहीं समझते?'
'जिस काम में आप शरीक हैं, वह धर्म है या अधर्म, इसकी मैं परवाह नहीं करता।'
'मैं चाहता हूँ, आप खुद विचार करें। और अगर आप इस आयोजन को समाज के लिए उपयोगी समझें, तो उसमें सहयोग दें। मिस्टर खन्ना की नीति मुझे बहुत पसन्द आयी।
खन्ना बोले––मैं तो साफ़ कहता हूँ और इसीलिए बदनाम हूँ।
राय साहब ने दुर्बल मुस्कान के साथ कहा––मुझ में तो विचार करने की शक्ति ही नहीं। सज्जनों के पीछे चलना ही मैं अपना धर्म समझता हूँ।
'तो लिखिए कोई अच्छी रकम।'
'जो कहिए, वह लिख दूँ।'
'जो आप की इच्छा।'
'आप जो कहिए,वह लिख दूँ।'
'तो दो हजार से कम क्या लिखिएगा।'
राय साहब ने आहत स्वर में कहा––आपकी निगाह में मेरी यही हैसियत है?
उन्होंने क़लम उठाया और अपना नाम लिखकर उसके सामने पाँच हजार लिख दिये। मेहता ने सूची उनके हाथ से ले ली; मगर उन्हें इतनी ग्लानि हुई कि राय