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गोदान २३


हैं, हज़ारों आदमियों पर हुकूमत है। रुपए न जमा होते हों; पर सुख तो सभी तरह का भोगते हैं। धन लेकर आदमी और क्या करता है?

'तुम्हारी समझ में हम और वह बराबर हैं?'

'भगवान ने तो सबको बराबर ही बनाया है।'

'यह बात नहीं है बेटा, छोटे-बड़े भगवान के घर से बनकर आते हैं। सम्पत्ति बड़ी तपस्या से मिलती है। उन्होंने पूर्वजन्म में जैसे कर्म किये हैं, उनका आनन्द भोग रहे हैं। हमने कुछ नहीं संचा, तो भोगें क्या?

'यह सब मन को समझाने की बातें हैं। भगवान सबको बराबर बनाते है। यहाँ जिसके हाथ में लाठी है,वह गरीबों को कुचलकर बड़ा आदमी बन जाता है।'

'यह तुम्हारा भरम है। मालिक आज भी चार घण्टे रोज़ भगवान का भजन करते है।'

'किसके बल पर यह भजन-भाव और दान-धर्म होता है ?'

'अपने बल पर।'

'नहीं, किसानों के बल पर और मजदूरों के बल पर। यह पाप का धन पचे कैसे? इसीलिए दान-धर्म करना पड़ता है, भगवान का भजन भी इसीलिए होता है,भूखेनंगे रहकर भगवान का भजन करें,तो हम भी देखें। हमें कोई दोनों जून खाने को दे तो हम आठों पहर भगवान का जाप ही करते रहें। एक दिन खेत में ऊख गोड़ना पड़े तो सारी भक्ति भूल जाय।'

{{Gapहोरी ने हार कर कहा--अब तुम्हारे मुंह कौन लगे भाई, तुम तो भगवान की लीला में भी टाँग अड़ाते हो।

तीसरे पहर गोबर कुदाल लेकर चला, तो होरी ने कहा-ज़रा ठहर जाओ देगा, हम भी चलते हैं। तब तक थोड़ा-सा भूसा निकालकर रख दो। मैने भोला को देने को कहा है। बेचारा आजकल बहुत तंग है।

गोबर ने अवज्ञा-भरी आँखों से देखकर कहा-हमारे पास बेचने को भूसा नहीं है।

'बेचता नहीं हूँ भाई, यों ही दे रहा हूँ। वह संकट में है, उसकी मदद तो करनी ही पड़ेगी।'

'हमें तो उन्होंने कभी एक गाय नहीं दे दी।'

'दे तो रहा था; पर हमने ली ही नहीं।'

धनिया मटककर बोली-गाय नहीं वह दे रहा था। इन्हें गाय दे देगा! आँख में अंजन लगाने को कभी चिल्लू-भर दूध तो भेजा नहीं, गाय देगा!

होरी ने कसम खायी-नहीं,जवानी क़सम, अपनी पछाईं गाय दे रहे थे। हाथ तंग है,भूसा-चारा नहीं रख सके। अब एक गाय बेचकर भूसा लेना चाहते हैं। मैंने सोचा,संकट में पड़े आदमी की गाय क्या लूँगा। थोड़ा-सा भूसा दिये देता हूँ, कुछ रुपए हाथ आ जायँगे तो गाय ले लूंगा। थोड़ा-थोड़ा करके चुका दूंगा। अस्सी रुपए की है; मगर ऐसी कि आदमी देखता रहे।

गोबर ने आड़े हाथों लिया-तुम्हारा यही धर्मात्मापन तो तुम्हारी दुर्गत कर रहा