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२४ गोदान


है। साफ-साफ तो वात है। अस्सी रुपए की गाय है, हमसे वीस रुपए का भूगा ले लें और गाय हमे दे दे। साठ रुपए रह जायेंगे,वह हम धीरे-धीरे दे देंगे।

होरी रहस्यमय ढंग से मुस्कराया--मैने ऐसी चाल सोची है कि गाय सेंत-मेंत में हाथ आ जाय। कहीं भोला की सगाई ठीक करनी है, बस। दो-नार मन भसा तो खाली अपना रंग जमाने को देता हूँ।

गोवर ने निरस्कार किया--तो तुम अब सब की सगाई ठीक करते फिरोगे?

धनिया ने तीखी आँखों से देखा-अब यही एक उद्यम तो रह गया है। न देनाह है हमें भूमा किसी को। यहाँ भोली-भाला किसी का करज़ नही खाया है।

होरी ने अपनी सफाई दी-अगर मेरे जतन से किसी का घर वस जाय,तो इसमें कौन-सी बुराई है?

गोवर ने चिलम उठाई और आग लेने चला गया। उगे यह झमेला बिल्कुल नहीं भाता था।

धनिया ने सिर हिला कर कहा--जो उनका घर बसायेगा,वह अम्सी रुपए की गाय लेकर चुप न होगा।एक थैली गिनवायेगा।

होरी ने पुचाग दिया--यह मै जानता है;लेकिन उनकी भलमनसी को भी तो देखो। मुझसे जब मिलता है,तेरा बखान ही करता है--ऐसी लक्ष्मी है, ऐसी सलीकेदार है।

धनिया के मुख पर स्निग्धता झलक पड़ी। मनभाय मुड़िया हिलाये वाले भाव से वोली--मै उनके बखान की भूखी नहीं हूँ,अपना बखान धरे रहें।

होरी ने स्नेह-भरी मुस्कान के साथ कहा-मैने तो कह दिया,भैया,वह नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देती,गालियों से बात करती है। लेकिन वह यही कहे जाय कि वहऔरत नहीं, लक्ष्मी है। बात यह है कि उसकी घरवाली जवान की बड़ी तेज थी। वेचारा उसके डर के मारे भागा-भागा फिरता था। कहता था, जिस दिन तुम्हारी घरवाली का मुँह सवेरे देख लेता हूँ,उम दिन कुछ-न-कुछ जरूर हाथ लगता है। मैने कहा-- तुम्हारे हाथ लगता होगा, यहाँ तो रोज देखते है,कभी पैसे से भेंट नहीं होती।

'तुम्हारे भाग ही खोटे हैं, तो मैं क्या करूं।'

'लगा अपनी घरवाली की बुराई करने-भिखारी को भीख तक नहीं देती थी, झाड़ लेकर मारने दौड़ती थी,लालचिन ऐसी थी कि नमक तक दूसरों के घर से माँग लाती थी!'

‘मरने पर किसी की क्या बुराई करूं। मुझे देखकर जल उठती थी।'

भोला वड़ा गमखोर था कि उसके साथ निबाह कर दिया। दूसरा होता तो जहर खाके मर जाता। मुझसे दस साल बड़े होंगे भोला; पर राम-राम पहले ही करते हैं।'

'तो क्या कहते थे कि जिस दिन तुम्हारी घरवाली का मुंह देख लेता हूँ, तो क्या होता है?"

'उस दिन भगवान कहीं-न-कहीं से कुछ भेज देते हैं।'