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गो-दान
 

"उसका किराया एक पैसा सही। हमारे घर में रहती है,जहाँ जाय पूछकर जाय। आज आती है तो खबर लेता हूँ।'

पुर चलने लगा। धनिया को होरी ने न आने दिया। रूपा क्यारी बराती थी। और सोना मोट ले रही थी। रूपा गोली मिट्टी के चूल्हे और बरतन बना रही थी,और सोना सशंक आँखों से सोनारी की ओर ताक रही थी। शंका भी थी,आशा भी थी, शंका अधिक थी,आशा कम। सोचती थी,उन लोगों को रुपए मिल रहे हैं,तो क्यों छोड़ने लगे। जिनके पास पैसे हैं,वे तो पैसे पर और भी जान देते हैं। और गौरी महतो तो एक ही लालची हैं। मथुरा में दया है,धरम है;लेकिन वाप की इच्छा जो होगी, वही उसे माननी पड़ेगी;मगर सोना भी बचा को ऐसा फटकारेगी कि याद करेंगे। वह साफ कहेगी,जाकर किसी धनी की लड़की से ब्याह कर,तुझ-जैसे पुरुष के साथ मेरा निबाह न होगा। कहीं गौरी महतो मान गये,तो वह उनके चरन धो-धोकर पियेगी। उनकी ऐसी सेवा करेगी कि अपने बाप की भी न की होगी। और सिलिया को भर-गेट मिठाई खिलायेगी। गोवर ने उसे जो रुपया दिया था उसे वह अभी तक संचे हुए थी। इस मृदु कल्पना से उसकी आँखें चमक उठी और कपोलों पर हलकी-सी लाली दौड़ गई।

मगर सिलिया अभी तक आयी क्यों नहीं? कौन बड़ी दूर है। न आने दिया होगा उन लोगों ने। अहा! वह आ रही है। लेकिन बहुत धीरे-धीरे आती है। सोना का दिल बैठ गया। अभागे नहीं माने माइत,नहीं सिलिया दौड़ती आती। तो सोना से हो चुका ब्याह। मुंह धो रखो।

सिलिया आयी ज़रूर पर कुएँ पर न आकर खेत में क्यारी बराने लगी। डर रही थी,होरी पूछेगे कहाँ थी अब तक, तो क्या जवाब देगी। सोना ने यह दो घण्टे का समय बड़ी मुश्किल से काटा। पुर छूटते ही वह भागी हुई सिलिया के पास पहुंची।

'वहाँ जाकर तू मर गयी थी क्या? ताकते-ताकते आँखें फूट गयीं।'

सिलिया को बुरा लगा--तो क्या मैं वहाँ सोती थी। इस तरह की बातचीत राह चलते थोड़े ही हो जाती है। अवमर देखना पड़ता है। मथुरा नदी की ओर ढोर चराने गये थे। खोजती-खोजती उसके पास गयी और तेरा सन्देसा कहा। ऐसा परसन हुआ कि तुझसे क्या कहूँ। मेरे पाँव पर गिर पड़ा और बोला--सिल्लो,मैंने तो जब से सुना है कि सोना मेरे घर में आ रही है,तब से आँखों की नींद हर गयी है। उसकी वह गालियाँ मुझे फल गयीं;लेकिन काका को क्या करूँ। वह किसी की नहीं सुनते।

सोना ने टोका--तो न सुनें। सोना भी जिद्दिन है। जो कहा है वह कर दिखायेगी। फिर हाथ मलते रह जायेंगे।

'बस उसी छन ढोरों को वहीं छोड़,मुझे लिये हुए गौरी महतो के पास गया। महतो के चार पुर चलते हैं। कुआँ भी उन्हीं का है। दस बीघे ऊख है। महतो को देख के मुझे हँसी आ गयी। जैसे कोई घसियारा हो। हाँ,भाग का बली है। बाप-बेटे में खूब कहा-सुनी हुई। गौरी महतो कहते थे,तुझसे क्या मतलब,मैं चाहे कुछ लूं या न लूं;तू कौन होता है बोलनेवाला। गथुरा कहता था,तुमको लेना-देना है,तो मेरा