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गो-दान
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ब्याह मत करो,मैं अपना ब्याह जैसे चाहूँगा कर लूंगा। बात बढ़ गयी और गौरी महतो ने पनहियाँ उतारकर मथुरा को खूब पीटा। कोई दूसरा लड़का इतनी मार खाकर बिगड़ खड़ा होता। मथुरा एक धूसा भी जमा देता,तो महतो फिर न उठते;मगर बेचारा पचासों जूते खाकर भी कुछ न बोला। आँखों में आँसू भरे,मेरी ओर गरीबों की तरह ताकता हुआ चला गया। तब महतो मुझ पर बिगड़ने लगे। सैकड़ों गालियाँ दीं;मगर मैं क्यों सुनने लगी थी। मुझे उनका क्या डर था? मैंने सफा कह दिया-महतो, दो-तीन सौ कोई भारी रकम नहीं है,और होरी महतो,इतने में विक न जायँगे,न तुम्हीं धनवान हो जाओगे,वह सब धन नाच-तमासे में ही उड़ जायगा,हाँ,ऐसी बहू न पाओगे।

साँचा:GAPसोना ने सजल आँखों से पूछा--महतो इतनी ही बात पर उन्हें मारने लगे?

साँचा:GAPसिलिया ने यह बात छिपा रक्खी थी। ऐसी अपमान की बात सोना के कानों में न डालना चाहती थी;पर यह प्रश्न सुनकर संयम न रख सकी। बोली--वही गोवर भयावाली बात थी। महतो ने कहा-आदमी जूठा तभी खाता है जब मीठा हो। कलंक चाँदी से ही धुलता है। इस पर मथुरा बोला--काका कौन घर कलंक से बचा हुआ है। हाँ,किसी का खुल गया,किसी का छिपा हुआ है। गौरी महतो भी पहले एक चमारिन से फंसे थे। उससे दो लड़के भी हैं। मथुरा के मुंह से इतना निकलना था कि डोकरे पर जैसे भत सवार हो गया। जितना लालची है,उतना ही क्रोधी भी है। विना लिये न मानेगा।

साँचा:GAPदोनों घर चलीं। सोना के सिर पर चरसा,रस्सा और जुए का भारी वोझ था;पर इस समय वह उसे फूल से भी हल्का लग रहा था। उसके अन्तस्तल में जैसे आनन्द और स्फूर्ति का सोता खुल गया हो। मथुरा की वह वीर मूर्ति सामने खड़ी थी, और वह जैसे उसे अपने हृदय में बैठाकर उसके चरण आँसुओं से पखार रही थी। जैसे आकाश की देवियाँ उसे गोद में उठाये आकाश में छाई हुई लालिमा में लिये चली जा रही हों।

उसी रात को सोना को बड़े जोर का ज्वर चढ़ आया।

तीसरे दिन गौरी महतो ने नाई के हाथ यह पत्र भेजा-

'स्वस्ती श्री सर्वोपमा जोग श्री होरी महतो को गौरीराम का राम-राम बाँचना। आगे जो हम लोगों में दहेज की बातचीत हुई थी,उस पर हमने सान्त मन से बिचार किया,समझ में आया कि लेन-देन से वर और कन्या दोनों ही के घरवाले जेरवार होते हैं। जब हमारा-तुम्हारा सम्बन्ध हो गया,तो हमें ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि किसी को न अखरे। तुम दान-दहेज की कोई फिकर मत करना,हम तुमको सौगन्ध देते हैं। जो कुछ मोटा-महीन जुरे बरातियों को खिला देना। हम वह भी न माँगेंगे। रसद का इन्तजाम हमने कर लिया है। हाँ,तुम खुसी-खुर्रमी से हमारी जो खातिर करोगे वह सिर झुकाकर स्वीकार करेंगे।'