है। अब क्या पूछना है,चाहे रोज एक साड़ी पहने। सैयाँ भये कोतवाल अब डर काहे का। भोला की आँखें फूट गयी हैं क्या?
शोभा बड़ा हँसोड़ था। सारे गाँव का विदूपक,बल्कि नारद। हर एक बात की टोह लगाता रहता था। एक दिन नोहरी उमे घर में मिल गयी। कुछ हँसी कर बैठा। नोहरी ने नोखेराम से जड़ दिया। शोभा की चौपाल में तलबी हुई और ऐसी डाँट पड़ी कि उम्र-भर न भूलेगा।
एक दिन लाला पटेश्वरी प्रसाद की शामत आ गयी। गर्मियों के दिन थे। लाला बगीचे में आम तुड़वा रहे थे। नोहरी बनी-ठनी उधर से निकली। लाला ने पुकारानोहरा रानी,इधर आओ,थोड़े मे आम लेती जाओ,बड़े मीठे हैं।
नोहरी को भ्रम हुआ,लाला मेरा उपहास कर रहे हैं। उसे अब घमण्ड होने लगा था। वह चाहती थी,लोग उसे ज़मीदारिन समझें और उसका सम्मान करें। घमण्डी आदमी प्रायः शक्की हुआ करता है। और जब मन में चोर हो तो शक्कीपन और भी बढ़ जाता है। वह मेरी ओर देखकर क्यों हंँसा? सब लोग मुझे देखकर जलते क्यों हैं? मैं किसी से कुछ माँगने नहीं जाती। कौन बड़ी सतवन्ती है! ज़रा मेरे सामने आये,तो देखू। इतने दिनों में नोहरी गाँव के गुप्त रहस्यों से परिचित हो चुकी थी। यही लाला कहारिन को रखे हुए हैं और मुझे हॅसते हैं। इन्हें कोई कुछ नहीं कहता। बड़े आदमी हैं न। नोहरी गरीब है,जात की हेठी है;इसलिए सभी उसका उपहास करते हैं। और जैसा बाप है,वैसा ही बेटा। इन्हीं का रमेसरी तो सिलिया के पीछे पागल बना फिरता है। चमारियों पर तो गिद्ध की तरह टूटते हैं,उस पर दावा है कि हम ऊँचे हैं।
उसने वहीं खड़े होकर कहा--तुम दानी कब से हो गये लाला! पाओ तो दूसरों की थाली की रोटी उड़ा जाओ। आज बड़े आमवाले हुए हैं। मुझसे छेड़ की तो अच्छा न होगा,कहे देती हूँ।
ओ हो! इस अहीग्नि का इतना मिजाज! नोखेराम को क्या फाँस लिया,समझती है सारी दुनिया पर उसका राज है। बोले--तू तो ऐसी तिनक रही है नोहरी,जैसे अब किसी को गाँव में रहने न देगी। ज़रा जबान संभालकर बातें किया कर,इतनी जल्द अपने को न भूल जा।
'तो क्या तुम्हारे द्वार कभी भीख माँगने आयी थी?'
'नोखेराम ने छाँह न दी होती,तो भीख भी माँगती।'
नोहरी को लाल मिर्च-सा लगा। जो कुछ मुँह में आया वका-दाढ़ीजार,लम्पट,मुंँहझौमा और जाने क्या-क्या कहा और उसी क्रोध में भरी हुई कोठरी में गयी और अपने बरतन-भाँड़े निकाल-निकालकर बाहर रखने लगी।
नोवेराम ने सुना तो घबराये हुए आये और पूछा--यह क्या कर रही है नोहरी,कपड़े-लत्ते क्यों निकाल रही है? किसी ने कुछ कहा है क्या?
नोहरी मर्दो को नचाने की कला जानती थी। अपने जीवन में उसने यही विद्या सीखी थी। नोखेराम पढ़े-लिखे आदमी थे। कानुन भी जानते थे। धर्म की पुस्तकें भी