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गो-दान
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था। बाल-बच्चा कोई न था;इसलिए लेन-देन भी कम कर दिया था और अधिकतर पूजा-पाठ में ही लगा रहता था। कितने ही असामियों ने उसके रुपए हज़म कर लिए थे;पर उसने किसी पर नालिश-फरियाद न की। होरी पर भी उसके सूद-ब्याज मिलाकर कोई डेढ़ सौ हो गये थे; मगर न होरी को ऋण चुकाने की कोई चिन्ता थी और न उसे वसूल करने की। दो-चार बार उसने तकाज़ा किया,घुड़का-डाँटा भी;मगर होरी की दशा देखकर चुप हो बैठा। अबकी संयोग से होरी की ऊख गाँव भर के ऊपर थी। कुछ नहीं तो उसके दो-ढाई सौ सीधे हो जायेंगे, ऐसा लोगों का अनुमान था। पटेश्वरीप्रसाद ने मॅगरू को सुझाया कि अगर इस वक्त होरी पर दावा कर दिया जाय तो सब रुपए वसूल हो जायँ। मँगरू इतना दयालु नहीं जितना आलसी। था। झंझट में पड़ना न चाहता था;मगर जब पटेश्वरी ने जिम्मा लिया कि उसे एक दिन भी कचहरी न जाना पड़ेगा,न कोई दूसरा कष्ट होगा,बैठे-बैठाये उसकी डिग्री हो जायगी,तो उसने नालिश करने की अनुमति दे दी,और अदालत-खर्च के लिए रुपए भी दे दिये। होरी को खबर भी न थी कि क्या खिचड़ी पक रही है। कब दावा दायर हुआ,कब डिग्री हुई,उसे बिलकुल पता न चला। कुर्कअमीन उसकी ऊख नीलाम करने आया,तब उसे मालूम हुआ। सारा गाँव खेत के किनारे जमा हो गया। होरी मँगरू साह के पास दौड़ा और धनिया पटेश्वरी को गालियाँ देने लगी। उसकी सहज-बुद्धि ने बता दिया कि पटेश्वरी ही की कारस्तानी है,मगर मँगरू साह पूजा पर थे,मिल न सके और धनिया गालियों की वर्षा करके भी पटेश्वरी का कुछ बिगाड़ न सकी। उधर ऊख डेढ़ सौ रुपए में नीलाम हो गयी और बोली भी हो गयी मॅगरू साह ही के नाम। कोई दूसरा आदमी न बोल सका। दातादीन में भी धनिया की गालियाँ सुनने का साहस न था।

धनिया ने होरी को उत्तेजित करके कहा--बैठे क्या हो, जाकर पटवारी से पूछते क्यों नहीं,यही धरम है तुम्हारा गाँव-घर के आदमियों के साथ?

होरी ने दीनता से कहा--पूछने के लिए तूने मुँह भी रखा हो। तेरी गालियाँ क्या उन्होंने न सुनी होंगी?

'जो गाली खाने का काम करेगा,उसे गालियाँ मिलेंगी ही।'

'तू गालियाँ भी देगी और भाई-चारा भी निभायेगी?'

'देखूँगी,मेरे खेत के नगीच कौन जाता है।'

'मिलवाले आकर काट ले जायेंगे,तू क्या करेगी और मैं क्या करूँगा। गालियाँ देकर अपनी जीभ की खुजली चाहे मिटा ले।'

'मेरे जीते-जी कोई मेरा खेत काट ले जायगा?'

'हाँ-हाँ, तेरे और मेरे जीते-जी। सारा गाँव मिलकर भी उसे नहीं रोक सकता। अब वह चीज़ मेरी नहीं,मँगरू साह की है।'

'मँगरू साह ने मर-मरकर जेठ की दुपहरी में सिंचाई और गोड़ाई की थी?'

'वह सब तूने किया;मगर अब वह चीज़ मैंगरू साह की है। हम उनके करजदार नहीं हैं?'