२८० | गोदान |
मान हो रहा है। ब्याहता होती, तो गोबर की मजाल थी कि उसके साथ यह बर्ताव करता। बिरादरी उसे दण्ड देती, हुक्का-पानी बंद कर देती। उसने कितनी बड़ी भूल की कि इस कपटी के साथ घर से निकल भागी। सारी दुनिया में हँसी भी हुई और हाथ कुछ न आया। वह गोबर को अपना दुश्मन समझने लगी। न उसके खाने-पीने की परवाह करती, न अपने खाने-पीने की। जब गोबर उसे मारता, तो उसे ऐसा क्रोध आता कि गोबर का गला छुरे से रेत डाले। गर्भ ज्यों-ज्यों पूरा होता जाता है, उसकी चिन्ता बढ़ती जाती है। इस घर में तो उसकी मरन हो जायगी। कौन उसकी देखभाल करेगा, कौन उसे सँभालेगा ? और जो गोबर इसी तरह मारता-पीटता रहा, तब तो उसका जीवन नरक ही हो जायगा।
एक दिन वह बम्बे पर पानी भरने गयी, तो पड़ोस की एक स्त्री ने पूछा--कै महीने का है रे ?
झुनिया ने लजाकर कहा--क्या जाने दीदी, मैंने तो गिना-गिनाया नहीं है।
दोहरी देह की, काली-कलटी, नाटी, कुरूपा, बड़े-बड़े स्तनोंवाली स्त्री थी। उसका पति एक्का हाँकता था और वह खुद लकड़ी की दूकान करती थी। झुनिया कई बार उसकी दूकान से लकड़ी लायी थी। इतना ही परिचय था।
मुस्कराकर बोली--मुझे तो जान पड़ता है, दिन पूरे हो गये हैं। आज ही कल में होगा। कोई दाई-वाई ठीक कर ली है ?
झुनिया ने भयातुर-स्वर में कहा--मैं तो यहाँ किसी को नहीं जानती।
'तेरा मर्दुआ कैसा है, जो कान में तेल डाले बैठा है ?'
'उन्हें मेरी क्या फिकर।'
'हाँ, देख तो रही हूँ। तुम तो सौर में बैठोगी, कोई करने-धरनेवाला चाहिए कि नहीं। सास-ननद, देवरानी-जेठानी, कोई है कि नहीं? किसी को बुला लेना था।'
'मेरे लिए सब मर गये।'
वह पानी लाकर जूठे बरतन मांँजने लगी, तो प्रसव की शंका से हृदय में धड़कनें हो रही थीं। सोचने लगी--कैसे क्या होगा भगवान् ? उँह ! यही तो होगा मर जाऊँगी; अच्छा है, जंजाल से छूट जाऊँगी।
शाम को उसके पेट में दर्द होने लगा। समझ गयी विपत्ति की घड़ी आ पहुंँची। पेट को एक हाथ से पकड़े हुए पसीने से तर उसने चूल्हा जलाया, खिचड़ी डाली और दर्द से व्याकुल होकर वहीं जमीन पर लेट रही। कोई दस बजे रात को गोबर आया, नाड़ी की दुर्गन्ध उड़ाता हुआ। लटपटाती हुई जबान से ऊटपटांग बक रहा था-- मुझे किसी की परवाह नहीं है। जिसे सौ दफे गरज हो, रहे, नहीं चला जाय। मैं किसी का ताव नहीं सह सकता। अपने माँ-बाप का ताव नहीं सहा, जिसने जनम दिया। तब दूसरों का ताव क्यों सहूँ। जमादार आँखें दिखाता है। यहाँ किसी की धौंस सहनेवाले नहीं हैं। लोगों ने पकड़ न लिया होता, तो खून पी जाता, खून ! कल देखूँगा बचा को। फाँसी ही तो होगी। दिखा दूंँगा कि मर्द कैसे मरते हैं। हँसता हुआ