गोदान | २८३ |
उसने अपना स्तन दबाकर दिखाया। दूध की धार फूट निकली।
झुनिया ने पूछा--तुम्हारी छोटी बिटिया तो आठ साल से कम की नहीं है !
'हाँ, आठवाँ है; लेकिन मुझे दूध बहुत होता था।'
'इधर तो तुम्हें कोई बाल-बच्चा नहीं हुआ।'
'वही लड़की पेट-पोछनी थी। छाती बिलकुल सूख गयी थी, लेकिन भगवान की लीला है, और क्या।'
अब से चुहिया चार-पाँच बार आकर बच्चे को दूध पिला जाती। बच्चा पैदा तो हुआ था दुर्बल, लेकिन चुहिया का स्वस्थ दूध पीकर गदराया जाता था। एक दिन चुहिया नदी स्नान करने चली गयी। बच्चा भूख के मारे छटपटाने लगा। चुहिया दस बजे लौटी, तो झुनिया बच्चे को कन्धे से लगाये झुला रही थी और बच्चा रोये जाता था। चुहिया ने बच्चे को उसकी गोद से लेकर दूध पिला देना चाहा; पर झुनिया ने उसे झिड़ककर कहा--रहने दो। अभागा मर जाय, वही अच्छा। किसी का एहसान, तो न लेना पड़े।
चुहिया गिड़गिड़ाने लगी। झुनिया ने बड़े अदरावन के वाद वच्चा उसकी गोद में दिया।
लेकिन झुनिया और गोबर में अब भी न पटती थी। झुनिया के मन में बैठ गया था कि यह पवका मतलबी, बेदर्द आदमी है; मुझे केवल भोग की वस्तु समझता है। चाहे मै मरूँ या जिऊँ; उसकी इच्छा पूरी किये जाऊँ, उसे बिलकुल गम नही। सोचता होगा, यह मर जायगी, तो दूसरी लाऊँगा; लेकिन मुंँह धो रखें बच्चू। मैं ही ऐसी अल्हड़ थी कि तुम्हारे फन्दे में आ गयी। तब तो पैरों पर सिर रखे देता था। यहाँ आते ही न जाने क्यों जैसे इसका मिजाज ही बदल गया। जाड़ा आ गया था; पर न ओढ़न, न बिछावन। रोटी-दाल से जो दो-चार रुपए बचते, ताड़ी में उड़ जाते थे। एक पुराना लिहाफ था। दोनों उसी में सोते थे; लेकिन फिर भी उनमें सौ कोस का अन्तर था। दोनों एक ही करवट में रात काट देते।
गोबर का जी शिशु को गोद में लेकर खेलाने के लिए तरसकर रह जाता था। कभी-कभी वह रात को उठाकर उसका प्यारा मुखड़ा देख लिया करता; लेकिन झुनिया की ओर से उसका मन खिचता था। झुनिया भी उससे बात न करती, न उसकी कुछ सेवा ही करती और दोनों के बीच में यह मालिन्य समय के साथ लोहे के मोर्चे की भाँति गहरा, दृढ़ और कठोर होता जाता था। दोनों एक दूसरे की बातों का उलटा ही अर्थ निकालते, वही जिससे आपस का द्वेष और भड़के। (और कई दिनों तक एक-एक वाक्य को मन में पाले रहते और उसे अपना रक्त पिला-पिलाकर एक दूसरे पर झपट पड़ने के लिए तैयार करते रहते, जैसे शिकारी कुत्ते हों।)
उधर गोबर के कारखाने में भी आये दिन एक-न-एक हंगामा उठता रहता था। अबकी बजट में शक्कर पर ड्यूटी लगी थी। मिल के मालिकों को मजूरी घटाने का अच्छा बहाना मिल गया। ड्यूटी से अगर पाँच की हानि थी, तो मजूरी घटा देने से दस का लाभ था। इधर महीनों से इस मिल में भी यही मसला छिड़ा हआ था। मजरों का संघ