२८४ | गोदान |
हड़ताल करने को तैयार बैठा हुआ था। इधर मजूरी घटी और उधर हड़ताल हुई। उसे मजूरी में धेले की कटौती भी स्वीकार न थी। जब इस तेज़ी के दिनों में मजूरी में एक धेले की भी बढ़ती नहीं हुई, तो अब वह घाटे में क्यों साथ दे ! मिर्जा खुर्शेद संघ के सभापति और पण्डित ओंकारनाथ, 'बिजली'-सम्पादक, मन्त्री थे। दोनों ऐसी हड़ताल कराने पर तुले हुए थे कि मिल-मालिकों को कुछ दिन याद रहे। मजूरों को भी हड़ताल से क्षति पहुँचेगी, यहाँ तक कि हज़ारों आदमी रोटियों को भी मुहताज हो जायँगे, इस पहलू की ओर उनकी निगाह बिलकुल न थी। और गोवर हड़तालियों में सबसे आगे था। उद्दण्ड स्वभाव का था ही, ललकारने की जरूरत थी। फिर वह मारने-मरने को न डरता था। एक दिन झुनिया ने उसे जी कड़ा करके समझाया भी--तुम बाल-बच्चेवाले आदमी हो, तुम्हारा इस तरह आग में कूदना अच्छा नहीं। इस पर गोबर विगड़ उठा--तू कौन होती है मेरे बीच में बोलनेवाली? मैं तुझसे सलाह नहीं पूछता। बात बढ़ गयी और गोबर ने झुनिया को खूब पीटा। चुहिया ने आकर झुनिया को छुड़ाया और गोबर को डाँटने लगी। गोबर के सिर पर शैतान सवार था। लाल-लाल आँखे निकालकर बोला--तुम मेरे घर में मत आया करो चूहा, तुम्हारे आने का कुछ काम नहीं।
चुहिया ने व्यंग के साथ कहा--तुम्हारे घर में न आऊँगी, तो मेरी रोटियाँ कैसे चलेगी। यहीं से मांँग-जाँचकर ले जाती हूँ, तब तवा गर्म होता है। मैं न होती लाला, तो यह बीबी आज तुम्हारी लातें खाने के लिए बैठी न होती।
गोबर घूँसा तानकर बोला--मैंने कह दिया, मेरे घर में न आया करो। तुम्हीं ने इस चुडै़ल का मिज़ाज आसमान पर चढ़ा दिया है।
चुहिया वही डटी हुई निःशंक खड़ी थी, बोली--अच्छा अब चुप रहना गोबर ! बेचारी अधमरी लड़कोरी औरत को मारकर तुमने कोई बड़ी जवाँमर्दी का काम नहीं किया है। तुम उसके लिए क्या करते हो कि तुम्हारी मार सहे? एक रोटी खिला देते हो इसलिए ? अपने भाग वखानो कि ऐसी गऊ औरत पा गये हो। दूसरी होती, तो तुम्हारे मुँह में झाडू़ मारकर निकल गई होती।
मुहल्ले के लोग जमा हो गये और चारों ओर से गोबर पर फटकारें पड़ने लगीं। वही लोग, जो अपने घरों में अपनी स्त्रियों को रोज पीटते थे, इस वक्त न्याय और दया के पुतले बने हुए थे। चुहिया और शेर हो गयी और फरियाद करने लगी--डाढ़ीजार कहता है, मेरे घर न आया करो। बीबी-बच्चा रखने चला है, यह नहीं जानता कि बीबी-बच्चों का पालना बड़े गुर्दे का काम है। इससे पूछो, मैं न होती तो आज यह बच्चा जो बछड़े की तरह कुलेलें कर रहा है, कहाँ होता? औरत को मारकर जवानी दिखाता है। मैं न हुई तेरी बीबी, नहीं यही जूती उठाकर मुंँह पर तड़ातड़ जमाती और कोठरी में ढकेलकर बाहर से किवाड़ बन्द कर देती। दाने को तरस जाते।
गोबर झल्लाया हुआ अपने काम पर चला गया। चुहिया औरत न होकर मर्द होती, तो मजा चखा देती। औरत के मुंँह क्या लगे।