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गोदान
 

गोबर ने कलसा भरकर निकाला। सबों ने रस पिया और एक चिलम तमाखू और पीकर लौटे। भोला ने कहा--कल तुम आकर गाय ले जाना गोबर,इस बखत तो सानी खा रही है।

गोवर की आँखें उसी गाय पर लगी हुई थीं और मन-ही-मन वह मुग्ध हुआ जाता था। गाय इतनी सुन्दर और मुडौल है,इसकी उसने कल्पना भी न की थी।

होरी ने लोभ को रोककर कहा--मंगवा लूंगा, जल्दी क्या है?

'तुम्हें जल्दी न हो,हमें तो जल्दी है। उसे द्वार पर देखकर तुम्हें वह वात याद रहेगी।'

'उमकी मुझे बड़ी फिकर है दादा!'

'तो कल गोबर को भेज देना।'

दोनों ने अपने-अपने खाँचे सिर पर रखे और आगे बढ़े। दोनों इतने प्रसन्न थे मानो व्याह करके लौटे हों। होरी को तो अपनी चिर संचित अभिलापा के पूरे होने का हर्ष था,और विना पैसे के। गोवर को इससे भी बहुमूल्य वस्तु मिल गयी थी। उसके मन में अभिलापा जाग उठी थी।

अवसर पाकर उमने पीछे की तरफ देखा। झुनिया द्वार पर खड़ी थी,मत्त आशा की भाँति अधीर, चंचल।


होरी को रात भर नींद नहीं आयी। नीम के पेड़-तले अपनी बाँस की खाट पर पड़ा बार-बार तारों की ओर देखता था। गाय के लिए एक नाँद गाड़नी है। बैलों से अलग उसकी नाँद रहे तो अच्छा। अभी तो रात को बाहर ही रहेगी;लेकिन चौमासे में उसके लिए कोई दूसरी जगह ठीक करनी होगी। बाहर लोग नजर लगा देते हैं। कभीकभी तो ऐसा टोना-टोटका कर देते है कि गाय का दूध ही सूख जाता है। थन में हाथ ही नहीं लगाने देती। लात मारती है। नहीं,वाहर वाँधना ठीक नहीं। और वाहर नांद भी कौन गाड़ने देगा। कारिन्दा साहब नजर के लिए मुंह फुलायेंगे।छोटी-छोटी बात के लिए गय साहब के पास फरियाद ले जाना भी उचित नहीं। और कारिन्दे के सामने मेरी मुनता कौन है। उनसे कुछ कहूँ,तो कारिन्दा दुश्मन हो जाय। जल में रहकर मगर मे वैर करना लड़कपन है।भीतर ही बाँधूंगा। आँगन है तो छोटा-सा; लेकिन एक मडैया डाल देने से काम चल जायगा। अभी पहला ही ब्यान है। पांच सेर से कम क्या दूध देगी। सेर-भर तो गोबर ही को चाहिए। रुपिया दूध देखकर कैसी ललचाती रहती है। अब पिये जितना चाहे। कभी-कभी दो-चार सेर मालिकों को दे आया करूँगा। कारिन्दा साहब की पूजा भी करनी ही होगी।और भोला के रुपए भी दे देना चाहिए। सगाई के ढकोसले में उसे क्यों डालूं। जो आदमी अपने ऊपर इतना विश्वास करे, उससे दगा करना नीचता है। अस्सी रुपए की गाय मेरे विश्वास पर दे दी। नहीं यहाँ तो कोई एक पैसे को नहीं पतियाता। सन में क्या कुछ न मिलेगा? अगर पच्चीस रुपए