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पृष्ठ:गो-दान.djvu/३३

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गोदान
३१
 


भी दे दूं, तो भोला को ढाढ़स हो जाय। धनिया से नाहक बता दिया। चुपके से गाय लेकर वाँध देता तो चकरा जाती। लगती पूछने, किसकी गाय है? कहाँ से लाये हो? खूब दिक करके तब बताता;लेकिन जब पेट में वात पचे भी। कभी दो-चार पैसे ऊपर से आ जाते हैं; उनको भी तो नहीं छिपा सकता। और यह अच्छा भी है। उसे घर की चिन्ता रहती है;अगर उसे मालूम हो जाय कि इनके पास भी पैसे रहते हैं, तो फिर नखरे वघारने लगे। गोवर जरा आलसी है,नहीं मैं गऊ की ऐसी सेवा करता कि जैसी चाहिए। आलसी-वालसी कुछ नहीं है। इस उमिर में कौन आलसी नहीं होता। मैं भी दादा के सामने मटरगस्ती ही किया करता था। बेचारे पहर रात से कुट्टी काटने लगते। कभी द्वार पर झाड़ लगाते,कभी खेत में खाद फेंकते। मै पड़ा सोता रहता था। कभी जगा देते,तो मै विगड़ जाता और घर छोड़कर भाग जाने की धमकी देता था। लड़के जब अपने माँ-बाप के सामने भी जिन्दगी का थोड़ा-सा सुख न भोगेंगे, तो फिर जव अपने मिर पड़ गयी तो क्या भोगेंगे? दादा के मरते ही क्या मैने घर नहीं सम्भाल लिया? सारा गाँव यही कहता था कि होरी घर वरवाद कर देगा; लेकिन सिर पर बोझ पड़ते ही मैने ऐसा चोला वदला कि लोग देखते रह गये। सोभा और हीरा अलग ही हो गये,नहीं आज इस घर की और ही बात होती। तीन हल एक साथ चलते। अब तीनों अलग-अलग चलते है। बस,समय का फेर है। धनिया का क्या दोप था। बेचारी जव से घर में आयी, कभी तो आराम से न बैठी। डोली से उतरते ही सारा काम सिर पर उठा लिया। अम्मा को पान की तरह फेरती रहती थी। जिसने घर के पीछे अपने को मिटा दिया, देवरानियों से काम करने को कहती थी, तो क्या बुरा करती थी। आखिर उसे भी तो कुछ आराम मिलना चाहिए। लेकिन भाग्य में आराम लिखा होता नब तो मिलता। तब देवरों के लिए मरती थी,अब अपने बच्चों के लिए मरती है। वह इतनी सीधी,गमखोर, निर्छल न होती, तो आज सोभा और हीरा जो मूंछों पर ताव देते फिरते हैं, कही भीख मांगते होते। आदमी कितना स्वार्थी हो जाता है। जिसके लिए लड़ो वही जान का दुश्मन हो जाता है।

होरी ने फिर पूर्व की ओर देखा। साइत भिनसार हो रहा है। गोबर काहे को जागने लगा। नहीं,कहके तो यही सोया था कि मैं अँधेरे ही चला जाऊँगा। जाकर नाँद तो गाड़ दूं, लेकिन नहीं,जब तक गाय द्वार पर न आ जाय,नाँद गाड़ना ठीक नहीं। कहीं भोला बदल गये या और किसी कारन से गाय नदी, तो सारा गाँव तालियाँ पीटने लगेगा, चले थे गाय लेने। पट्टे ने इतनी फुर्ती से नाँद गाड़ दी, मानो इसी की कसर थी। भोला है तो अपने घर का मालिक;लेकिन जब लड़के सयाने हो गये,तो बाप की कौन चलती है। कामता और जंगी अकड़ जायें,तो क्या भोला अपने मन से गाय मुझे दे देंगे,कभी नहीं।

सहसा गोबर चौंककर उठ बैठा और आँखें मलता हुआ बोला-अरे! यह तो भोर हो गया। तुमने नाँद गाड़ दी दादा?

होरी गोबर के सुगठित शरीर और चौड़ी छाती की ओर गर्व से देखकर और मन