३२६ | गोदान |
राजा साहब ने सिगार जलाते हुए तंखा की ओर कठोर आँखों से देखकर कहा-तुमने तो मूरत ही नहीं दिखाई मिस्टर तंखा। मुझसे उस दावत के सारे रुपए वसूल कर लिये और होटलवालों को एक पाई न दी, वह मेरा सिर खा रहे हैं। मैं इसे विश्वासघात समझता हूँ। मैं चाहूँ तो अभी तुम्हें पुलीस में दे सकता हूँ।
यह कहते हुए उन्होंने राय साहब को सम्बोधित करके कहा--ऐसा बेईमान आदमी मैंने नहीं देखा राय साहब। मैं सत्य कहता हूँ, मैं कभी आपके मुकाबले में न खड़ा होता। मगर इसी शैतान ने मुझे बहकाया और मेरे एक लाख रुपए बरबाद कर दिये। बँगला खरीद लिया साहब, कार रख ली। एक वेश्या से आशनाई भी कर रखी है। पूरे रईस बन गये और अब दगाबाजी शुरू की है। रईसों की गान निभाने के लिए रियासत चाहिए। आपकी रियासत अपने दोस्तों की आँखों में धूल झोंकना है।
राय साहब ने तंखा की ओर तिरस्कार की आँखों से देखा। और बोले--आप चुप क्यों हैं मिस्टर तंखा, कुछ जवाब दीजिए। राजा साहब ने तो आपका सारा मेहनताना दबा लिया। है इसका कोई जवाब आपके पास ? अब कृपा करके यहाँ से चले जाइए और खबरदार फिर अपनी मूरत न दिखाइएगा। दो भले आदमियों में लड़ाई लगाकर अपना उल्लू सीधा करना बेपूंँजी का रोज़गार है; मगर इसका घाटा और नफ़ा दोनों ही जान-जोखिम है, समझ लीजिए।
तंखा ने ऐसा सिर गड़ाया कि फिर न उठाया। धीरे से चले गये। जैसे कोई चोर कुत्ता मालिक के अन्दर आ जाने पर दबकर निकल जाय।
जब वह चले गये, तो राजा साहब ने पूछा--मेरी बुराई करता होगा ?
'जी हाँ; मगर मैंने भी खूब बनाया।'
'शैतान है।'
'पूरा।'
'बाप-बेटे में लड़ाई करवा दे, मियाँ-बीवी में लड़ाई करवा दे। इस फ़न में उस्ताद है। खैर, आज बचा को अच्छा सबक़ मिल गया।'
इसके बाद रुद्रपाल के विवाह की बातचीत शुरू हुई। राय साहब के प्राण सूखे जा रहे थे। मानो उन पर कोई निगाना बाँधा जा रहा हो। कहाँ छिप जायँ। कैसे कहें कि रुद्रपाल पर उनका कोई अधिकार नहीं रहा; मगर राजा साहब को परिस्थिति का ज्ञान हो चुका था। राय साहब को अपनी तरफ़ से कुछ न कहना पड़ा। जान बच गयी।
उन्होंने पूछा--आपको इसकी क्योंकर खबर हुई ?
'अभी-अभी गद्रपाल ने लड़की के नाम एक पत्र भेजा है, जो उसने मुझे दे दिया।'
'आजकल के लड़कों में और तो कोई खूबी नज़र नहीं आती, बस स्वच्छन्दता की सनक सवार है।'
'सनक तो है ही; मगर इसकी दवा मेरे पास है। मैं उस छोकरी को ऐसा गायब कर दूंँ कि कहीं पता न लगेगा। दस-पाँच दिन में यह सनक ठण्डी हो जायगी। समझाने से कोई नतीजा नहीं।'