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३५४ गोदान

से वह पिघल गया था। उम्र की ऐसी कोई बात नहीं। मरना-जीना तक़दीर के हाथ है। बूढ़े बैठे रहते हैं, जवान चले जाते हैं। रूपा को सुख लिखा है, तो वहाँ भी सुख उठायेगी; दुःख लिखा है, तो कहीं भी सुख नहीं पा सकती और लड़की बेचने की तो कोई बात ही नहीं। होरी उससे जो कुछ लेगा, उधार लेगा और हाथ में रुपए आते ही चुका देगा। इसमें शर्म या अपमान की कोई बात ही नहीं है। बेशक, उसमें समाई होती, तो वह रूपा का ब्याह किसी जवान लड़के से और अच्छे कुल में करता, दहेज भी देता, बरात के खिलाने-पिलाने में भी खूब दिल खोलकर खर्च करता; मगर जब ईश्वर ने उसे इस लायक नहीं बनाया,तो कुश-कन्या के सिवा और वह कर क्या सकता है ? लोग हँसेंगे; लेकिन जो लोग खाली हँसते हैं, और कोई मदद नहीं करते, उनकी हँसी की वह क्यों परवा करे। मुश्किल यही है कि धनिया न राजी होगी। गधी तो है ही। वही पुरानी लाज ढोये जायेगी। यह कुल-प्रतिष्ठा के पालने का समय नहीं, अपनी जान बचाने का अवसर है। ऐसी ही बड़ी लाजवाली है, तो लाये, पाँच सौ निकाले। कहाँ धरे हैं?

दो दिन गुजर गये और इस मामले पर उन लोगों में कोई बातचीत न हुई। हाँ, दोनों सांकेतिक भाषा में बातें करते थे।

धनिया कहती--वर-कन्या जोड़ के हों तभी याह का आनन्द है।

होरी जवाब देता--याह आनन्द का नाम नहीं है पगली, यह तो तपस्या है।

'चलो तपस्या है?'

'हाँ, मैं कहता जो हूँ। भगवान आदमी को जिस दशा में डाल दें, उसमें सुखी रहना तपस्या नहीं, तो और क्या है ?'

दूसरे दिन धनिया ने वैवाहिक आनन्द का दूसरा पहलू सोच निकाला। घर में जब तक सास-ससुर, देवरानियाँ-जेठानियाँ न हों, तो ससुराल का सुख ही क्या? कुछ दिन तो लड़की बहुरिया बनने का सुख पाये।

होरी ने कहा--वह वैवाहिक-जीवन का सुख नहीं, दंड है।

धनिया तिनक उठी--तुम्हारी बातें भी निराली होती हैं। अकेली बहू घर में कैसे रहेगी, न कोई आगे न कोई पीछे।

होरी बोला--तू तो इस घर में आयी तो एक नहीं, दो-दो देवर थे, सास थी, ससुर था। तूने कौन-सा सुख उठा लिया, बता।

'क्या सभी घरों में ऐसे ही प्राणी होते हैं।'

'और नहीं तो क्या आकाश की देवियाँ आ जाती हैं। अकेली तो बहू। उस पर हुकूमत करनेवाला सारा घर। बेचारी किस-किस को खुश करे। जिसका हुक्म न माने, वही बैरी। सबसे भला अकेला।'

फिर भी बात यहीं तक रह गयी; मगर धनिया का पल्ला हलका होता जाता था। चौथे दिन रामसेवक महतो खुद आ पहुँचे। कलाँ-रास घोड़े पर सवार, साथ एक नाई और एक खिदमतगार, जैसे कोई बडा ज़मीदार हो। उम्र चालीस