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३६४ गोदान

उस मजदूर ने कहा--कैसा जी है होरी भैया ?

होरी के सिर में चक्कर आ रहा था। बोला--कुछ नहीं, अच्छा हूँ।

यह कहते-कहते उसे फिर कै हुई और हाथ-पाँव ठण्डे होने लगे। यह सिर में चक्कर क्यों आ रहा है ? आँखों के सामने जैसे अँधेरा छाया जाता है। उसकी आँखें बन्द हो गयीं और जीवन की सारी स्मृतियाँ सजीव हो-होकर हृदय-पट पर आने लगीं; लेकिन बेक्रम, आगे की पीछे, पीछे की आगे, स्वप्न-चित्रों की भाँति बेमेल, विकृत और असम्बद्ध। वह सुखद बालपन आया जब वह गुल्लियाँ खलता था और माँ की गोद में सोता था। फिर देखा, जैसे गोबर आया है और उसके पैरों पर गिर रहा है। फिर दृश्य बदला, धनिया दुलहिन बनी हुई, लाल चुंँशदरी पहने उसको भोजन करा रही थी। फिर एक गाय का चित्र सामने आया, बिलकुल कामधेनु-सी। उसने उसका दूध दुहा और मंगल को पिला रहा था कि गाय एक देवी बन गयी और....

उसी मज़दूर ने फिर पुकारा--दोपहरी ढल गयी होरी, चलो झौवा उठाओ।

होरी कुछ न बोला। उसके प्राण तो न जाने किस-किस लोक में उड़ रहे थे। उसकी देह जल रही थी, हाथ-पाँव ठण्डे हो रहे थे। लू लग गयी थी।

उसके घर आदमी दौड़ाया गया। एक घण्टा में धनिया दौड़ी हुई आ पहुँची। शोभा और हीरा पीछे-पीछे खटोले की डोली बनाकर ला रहे थे।

धनिया ने होरी की देह छुई, तो उसका कलेजा सन् से हो गया। मुख कांतिहीन हो गया था।

काँपति - आवाज़ से बोली--कैसा जी है तुम्हारा ?

होरी असिथर आँखों से देखा और बोला--तुम आ गये गोबर ? मैंने मंगल के लिये गाय ले ली है। वह खड़ी है, देखो।

धनिया ने मौत की मूरत देखी थी। उसे पहचानती थी। उसे दबे पाँव आते भी देखा था, आँधी की तरह भी देखा था। उसके सामने सास मरी, ससुर मरा, अपने दो बालक मरे, गाँव के पचासों आदमी मरे। प्राण में एक धक्का-सा लगा। वह आधार जिस पर जीवन टिका हुआ था, जैसे खिसका जा रहा था, लेकिन नहीं, यह धैर्य का समय है, उसकी शंका निर्मूल है, लू लग गयी है, इसी से अचेत हो गये हैं।

उमड़ते हुए आँसुओं को रोककर बोली--मेरी ओर देखो, मैं हूँ, क्या मुझे नही पहचानते ?

होरी की चेतना लौटी। मृत्यु समीप आ गयी थी; आग दहकनेवाली थी। धुंँआ शान्त हो गया था। धनिया को दीन आँखों से देखा, दोनों कोनों से आँसू की दो बूंँदें ढुलक पड़ीं। क्षीण स्वर में बोला--मेरा कहा सुना माफ करना धनियाँ ! अब जाता हूँ। गाय की लालसा मन में ही रह गयी। अब तो यहाँ के रुपए क्रिया-करम में जायेंगे। रो मत धनिया, अब कब तक जिलायेगी ? सब दुर्दशा तो हो गयी। अब मरने दे।

और उसकी आँखें फिर बन्द हो गयीं। उसी वक्त हीरा और शोभा डोली लेकर पहुँच गये। होरी को उठाकर डोली में लिटाया और गाँव की ओर चले।