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पृष्ठ:गो-दान.djvu/६५

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गोदान
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कृतज्ञ हूँ। उस बज्म (सभा) में अपना जिक्र तो आता है, चाहे किसी तरह आये। आप सेक्रेटरी महोदय से कह दीजिएगा कि ओंकारनाथ उन आदमियों में नहीं है जो इन धमकियों से डर जाय। उसकी कलम उसी वक्त विश्राम लेगी,जब उसकी जीवन-यात्रा समाप्त हो जायगी। उसने अनीति और स्वेच्छाचार को जड़ से खोदकर फेंक देने का जिम्मा लिया है।

मिस मालती ने और उकसाया-मगर मेरी समझ में आपकी यह नीति नहीं आती कि जब आप मामूली शिष्टाचार से अधिकारियों का सहयोग प्राप्त कर सकते हैं,तो क्यों उनमे कन्नी काटते हैं? अगर आप अपनी आलोचनाओं में आग और विप ज़रा कम दें,तो मैं वादा करती हूँ कि आपको गवर्नमेंट से काफ़ी मदद दिला सकती हूँ। जनता को तो आपने देख लिया। उससे अपील की,उसकी खुशामद की,अपनी कठिनाइयों की कथा कही,मगर कोई नतीजा न निकला। अब ज़रा अधिकारियों को भी आजमा देखिए। तीसरे महीने आप मोटर पर न निकलने लगें, और सरकारी दावतों में निमन्त्रित न होने लगें तो मुझे जितना चाहें कोसिएगा। तब यही रईस और नेशनलिस्ट जो आपकी परवा नहीं करते,आपके द्वार के चक्कर लगायेंगे।

ओंकारनाथ अभिमान के साथ बोले--यही तो मैं नहीं कर सकता देवीजी!मैने अपने सिद्धान्तों को सदैव ऊंचा और पवित्र रखा है,और जीते-जी उनकी रक्षा करूंगा। दौलत के पुजारी तो गली-गली मिलेंगे,मैं सिद्धान्त के पुजारियों में हूँ।

'मैं इसे दम्भ कहती हूँ।'

'आपकी इच्छा।'

'धन की आपको परवा नहीं है ?'

'सिद्धान्तों का खून करके नहीं।'

'तो आपके पत्र में विदेशी वस्तुओं के विज्ञापन क्यों होते हैं? मैने किसी भी दूसरे पत्र में इतने विदेशी विज्ञापन नहीं देखे। आप बनते तो हैं आदर्शवादी और सिद्धान्तवादी,पर अपने फ़ायदे के लिए देश का धन विदेश भेजते हुए आपको ज़रा भी खेद नहीं होता? आप किसी तर्क से इस नीति का समर्थन नहीं कर सकते।'

ओंकारनाथ के पास सचमुच कोई जवाब न था। उन्हें बगलें झाँकते देखकर राय साहब ने उनकी हिमायत की-तो आखिर आप क्या चाहती हैं? इधर से भी मारे जायें उधर से भी मारे जायें,तो पत्र कैसे चले?

मिस मालती ने दया करना न सीखा था।

‘पत्र नहीं चलता तो बन्द कीजिए। अपना पत्र चलाने के लिए आपको विदेशी वस्तुओं के प्रचार का कोई अधिकार नहीं। अगर आप मजबूर हैं,तो सिद्धान्त का ढोंग छोड़िए। मैं तो सिद्धान्तवादी पत्रों को देखकर जल उठती हूँ। जी चाहता है, दियासलाई दिखा दूं। जो व्यक्ति कर्म और वचन में सामंजस्य नहीं रख सकता,वह और चाहे जो कुछ हो सिद्धान्तवादी नहीं है।'