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गोदान
 

मेहता खिल उठे। थोड़ी देर पहले उन्होंने खुद इसी विचार का प्रतिपादन किया था। उन्हें मालूम हुआ कि इस रमणी में विचार की शक्ति भी है,केवल तितली नहीं। संकोच जाता रहा।

'यही बात अभी मैं कह रहा था। विचार और व्यवहार में सामंजस्य का न होना ही धूर्तता है,मक्कारी है।'

मिस मालती प्रसन्न मुख से बोली-तो इस विषय में आप और मैं एक हैं,और मैं भी फिलासफ़र होने का दावा कर सकती हूँ।

खन्ना की जीभ में खुजली हो रही थी। बोले--आपका एक-एक अंग फिलासफ़ी में डूबा हुआ है।

मालती ने उनकी लगाम खींची-अच्छा,आपको भी फ़िलासफ़ी में दखल है। मैं तो समझती थी,आप बहुत पहले अपनी फिलासफ़ी को गंगा में डुबो बैठे। नहीं,आप इतने बैंकों और कम्पनियों के डाइरेक्टर न होते।

राय साहब ने खन्ना को सँभाला--तो क्या आप समझती हैं कि फिलासफ़रों को हमेशा फ़ाकेमस्त रहना चाहिए।

'जी हाँ! फ़िलासफ़र अगर मोह पर विजय न पा सके, तो फिलासफ़र कैसा?'

'इस लिहाज़ से तो शायद मिस्टर मेहता भी फिलासफ़र न ठहरें!'

मेहता ने जैसे आस्तीन चढ़ाकर कहा-मैंने तो कभी यह दावा नहीं किया राय साहब! मैं तो इतना ही जानता हूँ कि जिन औजारों से लोहार काम करता है,उन्हीं औजारों से सोनार नहीं करता। क्या आप चाहते हैं, आम भी उसी दशा में फले-फूलें,जिसमें बबूल या ताड़? मेरे लिए धन केवल उन सुविधाओं का नाम है जिनमें मैं अपना जीवन सार्थक कर सकूँ। धन मेरे लिए बढ़ने और फलने-फूलनेवाली चीज नहीं, केवल माधन है। मुझे धन की बिल्कुल इच्छा नहीं,आप वह साधन जुटा दें,जिसमें मैं अपने जीवन का उपयोग कर सकूँ।।

ओंकारनाथ समष्टिवादी थे। व्यक्ति की इस प्रधानता को कैसे स्वीकार करते?

'इसी तरह हर एक मजदूर कह सकता है कि उसे काम करने की सुविधाओं के लिए एक हज़ार महीने की ज़रूरत है।'

'अगर आप समझते है कि उस मजदूर के बगैर आपका काम नहीं चल सकता,तो आपको वह सुविधाएँ देनी पड़ेंगी। अगर वही काम दूसरा मजदूर थोड़ी-सी मजदूरी में कर दे,तो कोई वजह नहीं कि आप पहले मजदूर की खुशामद करें।'

'अगर मजदूरों के हाथ में अधिकार होता,तो मजदूरों के लिए स्त्री और शराब भी उतनी ही ज़रूरी सुविधा हो जाती जितनी फिलासफ़रों के लिए।'

'तो आप विश्वास मानिए,मैं उनसे ईर्ष्या न करता।'

'जब आपका जीवन सार्थक करने के लिए स्त्री इतनी आवश्यक है,तो आप शादी क्यों नहीं कर लेते?'

मेहता ने निस्संकोच भाव से कहा-इसीलिए कि मैं समझता हूँ,मुक्त भोग आत्मा