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गोदान
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'हुश!सौ रुपए! लाख रुपए का धर्म बिगाडूँ सौ के लिए।'

'अच्छा,आप खुद अपनी फ़ीस बताइए।'

'एक हजार,कौड़ी कम नहीं।'

'अच्छा मंजूर।'

'जी नहीं,लाकर मेहताजी के हाथ में रख दीजिए।'

मिर्जा़जी ने तुरन्त सौ रुपए का नोट जेब से निकाला और उसे दिखाते हुए खड़े होकर बोले-भाइयो!यह हम सब मरदों की इज्जत का मामला है। अगर मिस मालती की फ़रमाइश न पूरी हुई,तो हमारे लिए कहीं मुंँह दिखाने की जगह न रहेगी; अगर मेरे पास रुपए होते तो मैं मिस मालती की एक-एक अदा पर एक-एक लाख कुरबान कर देता। एक पुराने शायर ने अपने माशूक के एक काले तिल पर समरक़न्द और बोखारा के सूबे कुरबान कर दिये थे। आज आप सभी साहबों की जवाँमरदी और हुस्नपरस्ती का इम्तहान है। जिसके पास जो कुछ हो,सच्चे सूरमा की तरह निकालकर रख दे। आपको इल्म की क़सम,माशूक की अदाओं की क़सम,अपनी इज्जत की क़सम,पीछे क़दम न हटाइए। मरदो!रुपए खर्च हो जायँगे,नाम हमेशा के लिए रह जायगा। ऐसा तमाशा लाखों में भी सस्ता है। देखिए,लखनऊ के हसीनों की रानी एक जा़हिद पर अपने हुस्न का मन्त्र कैसे चलाती है?

भाषण समाप्त करते ही मिर्जा़जी ने हर एक की जेव की तलाशी शुरू कर दी पहले मिस्टर खन्ना की तलाशी हुई। उनकी जेब से पाँच रुपए निकले।

मिर्जा ने मुंँह फीका करके कहा--वाह खन्ना साहब, वाह!नाम बड़े दर्शन थोड़े। इतनी कम्पनियों के डाइरेक्टर,लाखों की आमदनी और आपके जेब में पाँच रुपए!लाहौल बिला कूबत!कहाँ है मेहता?आप ज़रा जाकर मिसेज़ खन्ना से कम-से-कम सौ रुपए वसूल कर लायें।

खन्ना खिसियाकर बोले-अजी,उनके पास एक पैसा भी न होगा। कौन जानता था कि यहाँ आप तलाशी लेना शुरू करेंगे?

'खैर आप खामोश रहिए। हम अपनी तकदीर तो आज़मा लें।'

'अच्छा तो मै जाकर उनसे पूछता हूँ।'

'जी नहीं,आप यहाँ से हिल नहीं सकते। मिस्टर मेहता, आप फ़िलासफ़र है,मनोविज्ञान के पण्डित। देखिए अपनी भद न कंराइएगा।'

मेहता शराब पीकर मस्त हो जाते थे। उस मस्ती में उनका दर्शन उड़ जाता था और विनोद सजीव हो जाता था। लपककर मिसेज़ खन्ना के पास गये और पाँच मिनट ही में मुंँह लटकाये लौट आये।

मिर्जा़ ने पूछा-अरे! क्या खाली हाथ?

राय साहब हँसे-का़जी के घर चूहे भी सयाने।

मिर्जा़ ने कहा--हो बड़े खुशनसीब खन्ना,खुदा की क़सम!

मेहता ने क़हक़हा मारा और जेब से सौ-सौ रुपए के पाँच नोट निकाले।