भी थी और मांस भी। इस उत्सव के लिए राय साहब अच्छी किस्म की शराब खास तौर पर खिंचवाते थे? खींची जाती थी दवा के नाम से;पर होती थी खालिस शराब। मांस भी कई तरह के पकते थे,कोफ़ते,कबाब और पुलाव मुर्ग,मुर्गियांबकरा,हिरन,तीतर,मोर,जिसे जो पसन्द हो,वह खाये।
भोजन शुरू हो गया तो मिस मालती ने पूछा--सम्पादकजी कहाँ रह गये? किसी को भेजो राय साहब,उन्हें पकड़ लाये।
राय साहब ने कहा-वह वैष्णव हैं,उन्हें यहाँ बुलाकर क्यों बेचारे का धर्म नष्ट करोगी। बड़ा ही आचारनिष्ठ आदमी है।
'अजी और कुछ न सही,तमाशा तो रहेगा।'
सहसा एक सज्जन को देखकर उसने पुकारा-आप भी तशरीफ़ रखते हैं मिर्जा खुर्शद,यह काम आपके सुपुर्द।आपकी लियाक़त की परीक्षा हो जायगी।
मिर्जा खुर्शद गोरे-चिट्टे आदमी थे,भूरी-भूरी मूंछे,नीली आँखें,दोहरी देह,चाँद के बाल सफाचट। छकलिया अचकन और चूड़ीदार पाजामा पहने थे। ऊपर से हैट लगा लेते थे। वोटिंग के समय चौंक पड़ते थे और नेशनलिस्टों की तरफ वोट देते थे। सूफ़ी मुसलमान थे। दो बार हज कर आये थे;मगर शराब खूब पीते थे। कहते थे,जब हम खुदा का एक हुक्म भी कभी नहीं मानते,तो दीन के लिए क्यों जान दें!बड़े दिल्लगीवाज,बेफिक्रे जीव थे। पहले बसरे में ठीके का कारोबार करते थे। लाखों कमाये,मगर शामत आयी कि एक मेम से आशनाई कर बैठे। मुकदमेबाजी हुई। जेल जाते-जाते बचे। चौबीस घण्टे के अन्दर मुल्क से निकल जाने का हुक्म हुआ। जो कुछ जहाँ था,वहीं छोड़ा और सिर्फ पचास हजार लेकर भाग खड़े हुए। बम्बई में उनके एजेण्ट थे। सोचा था,उनसे हिसाब-किताब कर लेंऔर जो कुछ निकलेगा उसी में जिन्दगी काट देंगे,मगर एजेण्टों ने जाल करके उनसे वह पचास हजार भी ऐंठ लिये। निराश होकर वहाँ से लखनऊ चले। गाड़ी में एक महात्मा से साक्षात् हुआ। महात्माजी ने उन्हें सब्ज बाग दिखाकर उनकी घड़ी,अंगूठियाँ,रुपए सब उड़ा लिये। बेचारे लखनऊ पहुंचे तो देह के कपड़ों के सिवा और कुछ न था। राय साहब से पुरानी मुलाकात थी। कुछ उनकी मदद से और कुछ अन्य मित्रों की मदद से एक जूते की दूकान खोल ली। वह अब लखनऊ की सबसे चलती हुई जते की दूकान थी चार-पाँच सौ रोज की बिक्री थी। जनता को उन पर थोड़े ही दिनों में इतना विश्वास हो गया कि एक बड़े भारी मुस्लिम ताल्लुकेदार को नीचा दिखाकर कौंसिल में पहुँच गये।
अपनी जगह पर बैठे-बैठे बोले--जी नहीं;मैं किसी का दीन नहीं बिगाड़ता। यह काम आपको खुद करना चाहिए। मज़ा तो जब है कि आप उन्हें शराब पिलाकर छोड़ें। यह आपके हुस्न के जादू की आज़माइश है।
चारों तरफ़ से आवाजें आयीं-हाँ-हाँ,मिस मालती, आज अपना कमाल दिखाइए। मालती ने मिर्जा को ललकारा,कुछ इनाम दोगे?
'सौ रुपए की थैली!'