पृष्ठ:चंदायन.djvu/१०३

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(६) खाँद-शपर, चीनी । खुरहुरी-पदमावतमे इसका उल्लेख हुआ है। वहाँ वासुदेवदारण अग्रवाल ने इसकी व्युत्पत्ति क्षुद्रफुल्ली-खुदहुली- खुरहरी बताया है और वाट क्त डिक्शनरी आव द इकनामिक प्राडाइम (भाग ३, पृष्ट ३९४ )से इमफे अनेक नाम गिनाये है। (पदमावत २८/४ )। पर हमारी दृष्टिमे यहाँ तात्पर्य छुहारेसे हैं। हीर-इसके कई अर्थ हो सबने हैं। (१) ईराक स्थित हीरके बने हुए वस्त्र । इब्न-बत्ताने वारे पने दीवाज (जरीका बना वस्त्र), हरीर (दाम) और चित्रित वासीको चर्चाही है जो वहाँ इलामके उद्भवसे पूर्व तैयार होते थे (आर्म इस्लामिया, खण्ड ९, पृ० ८९)। 'किन्तु इस्लमके युगमे इस स्थानका महत्व घट गया था। इस कारण कदाचित इससे यहाँ तात्पर्य यह न होगा। (२) मोतीचन्द्रका कहना है कि हेरातके मार्गसे जो वस्त्र भारत आते थे वे पहार अथवा हीरपट कहे जाते थे। ( कास्टयूम्स ऐण्ड टेक्सटाइल्स इन सस्तनत पीरियड, पृ० ३४)। (३) ऐसा वस्त्र जिसपर होरेकी आकृति हो ( यह सुझाव भी मोतीचन्द्रका ही है)। हो सकता है यहाँ इसीसे तात्पर्य हो, क्योंकि हर पटोर जैसा प्ररोग यदमावतमें मिलता है (३२९१); जिसका तात्पर्य ल्हरियादार पटोर है । उसी प्रकार यहाँ हीर पटोरसे तात्पर्य हीरेकी आकृति अकित पटोरसे हो सकता है । (४) लोककी योलचालमें किसी वस्तुकी सर्वोत्तम जुटी हुई वस्तुको, उस वस्तुका हीर कहा करते है। हमारी समसम उसी भावमे यहाँ इसका प्रयोग हुआ है। हीर पटोरसे तात्पर्य है उच्च कोटिका पटोर, अथवा बारीक किस्ममा पटोर । पटोर-देसिये आगे ३।७। (रीलैग्ड्स १०) सिफ्ते बाजीगरों दर पाजार शहर गोवर गोयद (गोवर नगरके वाजीगरोंफा वर्णन) हाट छरहँटा पेखन होई । देखेंहिं निसर मनुस औ जोई ।।? परवा राम रमायन कहहीं । गावहि कविच नाच भल करहीं ॥२ बहुरुपिये बहु मेस भरावा । पार बृढ़ चलि देख आवा ॥३ रासें गा हि भइ झडलावहिं । संग मूद विस देह पदावहि ॥४ कीनर गावहिं होइ पँवारा | नट नाचहिं औ बाजहिं तारा ॥५