पृष्ठ:चंदायन.djvu/१२३

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कै जर जाद कै पेट के पीरा । के सिर दाह को डसहुँ कीरा ॥३ के सर लाग घाम के झारा । पान पेट तूं गा दिसॅभारा ॥४ के दरसन काह के राता । पिरम भुलान कहसि नहिं याता॥५ कै तिहँ अरथ गवावा, मार लीन्ह बटमार ।६ नाउँ न कहसि नहिं ताक, बाजिर मुरुस गॅवार ।।७ टिप्पणी-(३) जर-ज्वर | जाद-अधिक । सिरदाह-मिरदर्द । कीरा-सर्प । (४) सर-तीन । घाम-धूप | शारा-गरमी । यिसँभार-बेहोश । (६) वटपार-बटमार, रास्तेम यारियोको लूटने वाले । ६८ (रीलैपड्म ३५) जवाब दादन बाजिर भर सक रा तरीके मुअम्मा (साकेतिक ढंगसे घाजिरका जनताको उत्तर) लोग कहें यह मुरुख अबानां । कही हियारी यूइ सयानां ॥१ मिरिख ऊँचफल' [लाग"] अकासा | हाथ चढ़े कै नाँही आसा ॥२ गहि चूकत को बॉह पसारे । तरुवर डार धरै को पारे ॥३ रात देवस रासहिं रखवारा । नन जो देखें जाइ सो मारा॥४ उरग डार फिरि देखेंउ रूखा । कॅवल फूल मोर हिरदै सूखा॥५ पियर पात जस बन जर, रहे कॉप कुँभलाइ ।६ विरह पवन जो डोलेउ, टूट परेउँ घहराइ ॥७ प्रस्तुत क्डवक्की दूसरी तीसरी और चौथी पक्तियोंको हजरत रुक्नुद्दीनने अपनी पुस्तक साफ्ते कुसियामै उद्धृत क्यिा है और उसके साथ अपने पिता अबदुईंदूस गगोहीका क्यिा हुआ उनका पारसी अनुवाद भी किया है। वह इस प्रकार है: (२) शजरे बल दस्त समर दर समा । पिता उमीदरत वरा दस्ते मा ।। (३) जह किरा दस्त पराजी कुनद। शासे पल्क दस्त के बानी कुनद ।। (४) रोज शब गदता निगहबा बसे । दुदतः शबद चूंकि बबीनद क्से ।। पाटान्तर : रवाफ्ते कुसियासे। १–फर । २-छुवै । ३-बहुत | ४-नैनन देखहि । टिप्पणी-(५) उरग -साँप ।