मूलपाट-(४) सो सोह। पाठान्तर-पजान प्रति- इस प्रतिके उपलब्धमे पोटोमें राल स्याहीसे लिपी पत्तियों अत्यन्त अस्पष्ट हैं । जिससे शीर्षक, और पत्ति ३, ६ और ७ का पाठ प्राप्त करना सम्भव नहीं है। १-मुकीना २-अरु ३-चरिया ४-जोगवई ५-पहिर ६-खण्ड ७-राता ८-गुजराता ९-चदोटा १०-आवा बजारू । टिप्पणी-(१) फुदिया-इसरा उस पदमावत ( ३२९१२) म भी है। यहाँ यामुदेव शरण अग्रवालने उसा {दने लगा हुआ नीवीबन्ध होनेकी सम्भावना प्रकट की है। किन्तु प्रस्तुत प्रसगम यह अनुमान सगत नही है। हमारी समझमे यह किसी प्रकारका अगिया या चोली है । अथवा यह पदमनाभ कृत कान्हडदे पर धम उल्लिसित दडी ( ३१५३) है । पूँदडी पिसी प्रमरमा मूल्यवान वस्त्र या जिसम सोने और रत्नोंका प्रयोग होता था (वनक सुकोमल दडी ए विचि रतन पईटा)। सेंदूरिया-सिदृरी रगकी । सारी-साड़ी। (२) मघवना-पदमावतम मेघोनारा ( ३२९४) और पृथ्वीचन्द्र चरितमै मेश्वनामा उल्लेख है (प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह, बड़ीदा, १९०९, पृ०१०२)। सम्भवत या यही बस्न है जिरो ज्योतिरीश्वर ठाकुरने अपने वर्णरत्नाक्रम मेघवर्ण और मेघडम्पर नामरो पटम्बर जातिके वस्त्रों में किया है। चौदहवीं शतीके विविधवर्णकम भी मेघडम्बर, मेघाडम्बर और मेघावली नामक वस्त्रोंका उल्लेख है (वर्णक समुच्चय, सम्पादक बी० जे० सदेसरा, पृ० ३४-३५)। मेघवम्बर साडयोंका उल्लेख प्राचीन बगला साहित्यमें भी प्राय मिलता है। इन सबसे अनुमान होता है कि यह आसमानी ( बादली) रगका कोई स्वामी शस्त्र रहा होगा। कसियारा-इम पाठके सम्बन्धमे कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता । उसे कयारा या गयारा भी पदा सकता है। पर इन नामोर मिमी पनकी जानकारी कहीं प्रात नहीं है। चक्या-पद्मावतम भी इसका उल्ल्प है (३२९४४)। (वहाँ उसके सम्पादकोंने उसे चिक्या पढा है। यह पाठ सम्भव है, पर हमने उसे जान बूझकर महा नहीं दिया है।) रामचन्द्र शुक्लने इसे चीकर नामक रेशमी वस्त्र बताया है। शब्दसागरके अनुसार विवाहम नेगके रूपमे दिये जानेवाले वस्त्रको चीकट कहते हैं। चकवावा उल्लेस यहाँ विवाहके अवसरपर दिये जाने वस्त्राये प्रसगम नहीं है। अत उसे चौकटके इस रूपम नहीं पहचाना जा सकता। उसे घस्रने किसी किसके रूपम समझना होगा। मोतीचन्द्रने उसे गहरे
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