पृष्ठ:चंदायन.djvu/१४७

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पठये बसीठ तुरी दै, राजा कह धुन काह ।६ किह औगुन हम छेके, कौन रजायसु आह ॥७ टिप्पणी--(१) वर –प्रवेश द्वार । सहतारा - तहलगा | (२) झार-एक एक करके। (३) भैइस-भैम । रिरियायो- निस्सहाय की भांति चिल्लाना । राधा-- पकाया हुना। भात-चावल । (४) करव--काँगा । काहा-क्या । सरापन--कोसते है । (५) पठिये-भेजिये । यसोठ--(स०-अवसृष्ट>प्रा० अवसिघ> वसिह >वसीट> बसीठ), ऐसा दूत जिसे सन्देशका पूरा उत्तरदायित्व सौप दिया जाय। (६) पठये-भेजे । तुरी-घोडा । धुन-विचार | काह-क्या । (७) क्षौगुन-~-अवगुण, अपराध । रजायसु-राज्यादेश । आह-है। १०४ (रीलैण्ड्य ६२) रफ्तने रसूलान पेशे राव रूपचन्द व राज नमूदन मुखनी राव महर (दूताका महरका सन्देश राव रूपचन्दको देना) बसिठ जाइ कटक नियरामा । रोइ कर बॉठा आरौं आवा ॥१ रा[इ] कैवायन बसिठ लड लाये । तुरी भेंट आगे ले आये ॥र फुनि बसिठहि सर भुइँ लै आवा । कौन रीस राजा चल आवा ॥३ जो मन होइ सो ऊतर दीजा । जो तुम्ह चाहिये अपही लीजा।।४ दरब कहउ ती भीस भरावहुँ । घोड़ कहो अबही लै आवहुँ ।।५ राजा देहु रजायसु, माथे पर चढ लेहुँ ।६ इँह महँ जो तुम चाहउ, आज काल के देखें ।।७ टिप्पणी-(१) करक-सेना । (२) घायन-उपहार । (३) रीसमोध, कोप । (४) दरय-द्रय, धन ।