पृष्ठ:चंदायन.djvu/१४८

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१०५ (रोलैण्ड्स १५) जवाब दादन राव मर रसूलान (दूतों को राव का उत्तर) सुन परधान बोल तूं मोरा । कहस तू छाड जाउँ गढ तोरा ॥१ दण्ड तोर हों लेहौं नाहीं । घोड लाख दोड मोहि तल आहीं ॥२ जाइ कहु तुम अरय दिवाऊँ । तोकै गोवर आज बसाऊँ ॥३ हम तुम जरम करहिं जगराज । चॉद विवाह देहु महिं आज ॥४ जो सुख देहु तो पाट पठाऊँ । वरके लेउँ तिहि धानि भराऊँ ॥५ जो तुम आवड डर राख, चाँद पियाही देहु ।६ जो रुचि आहे माँग, सो तुम अवहीं लेहु ॥७ १०६ (रोरेण्ड्स ६४) नवार दादन रसूहान मर राइ रूपचन्द रा (शव रूपचन्दके दूतीका कथन ) तूं नरिन्द देस पर राजा । अइस बोल तिहि कहत न छाजा ॥१ जिन धी होइ सो नाँउ न लिये । परयतरह अस गारि न दिये ॥२ जो पर पुतरिंस माइ बुलाना ! सो राजा गारी कम पावा ॥३ जो रे महर गारी मुन पावइ । आग लाइ पानी कहँ धाइ ॥४ चाँद और क्ह (दोन) वियाही । कौन उतर अब दीन ताही ॥५ चरु हम मार पियारह, फुनि उठ जारहु गॉउँ ।६ चाँदहिं दही मिलि आगी, अइसे पार को नाउँ ॥७ भूलपाट-५-देत ।