पृष्ठ:चंदायन.djvu/१४९

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(सैलेण्ट्स ६५) बर गुस्सह युदन राव स्पचन्द बर रसूलन व सामोरा मानदने इंशा (राव रूपचन्दका दूतोपर प्रोध) अमहिं डीठ तिह पार पियारू । खिन एक भीतर गोवर जाहँ ॥१ मूंड़ काट के गइ फिराऊँ । साल काढ़ के सैंस टॅगाऊँ ॥२ चील्ह खून मॉस लै जॉहें । कुकुरहि खून रकत सब साँहें ॥३ तिह का चूकत करत हिठाई । जइस मों कहउँ तइस कहुआई ॥४ जाइ बेग चॉदा लै आवहु । मूस दुबार टूट लै पावहु ॥५ करयों तस जस बोलेउँ, नॉउँ बसिठ कर आहु ।६ वेग चाँद लै आपहु, तूं इहवा हुत जाहु ॥७ टिप्पणी-(२) गह-पाँव । काद-निकाल कर । (३) चील्ह-चील पक्षी । कुकुर-धुत्ता । (५) मूख दूभार--मुख्य द्वार । (६) करवा- गा। (७) इहवाँ–यहाँ। १०८ (रीलैण्ड्स ७४) रजा तस्वीदने रमल्यान वयये बाज गुन्तन खुद अज राय (दूतोंको जानेका आदेश) राजा (बोलिक) दीन्हि रजायसु । सुनकै (पासिठ कीन्हि) छंदायसु॥१ अस तूं राजा कीन बुराई । चॉद सबद सुनि गोवर धाई ॥२ गोवर समुंद अतै अवगाहा । यूहहि राइ न पावइ थाहा ॥३ राजा (जो) सरग चढ़ धाबहु । तौ न धूर चाँदा के पापहु ॥४ राजा नसत जो सरग भृ आहे । चाँद निहारे मुहँ निसि चाहें ॥५ गगन चढ़े जो देसे, जाने इहवाँ आह ।६ थाह न इह राजा, चूड़ मरियहु काह ॥७ मूलपाठ-१-बोलि क वह, ----मारस कैरे, ३-जोर।