और उसने मूल निवास स्थानका नाम था । वहाँसे आने वाले घोडौंको तुरसार कहते थे । पीछे वह अश्वका पर्याय बन गया। (२) हंस-यह नाम हमें अश्वों की सूची में अन्यत्र कहीं देसने को नहीं मिला हो सकता है हस के समान सफेद घोडे को कहते रहे हो। हसोली-सम्भवत इसे ही जायसो ने हाँसुल कहा है (पद्मावत ४७१२) । ऐसा घोडा जिसका शरीर मेहदीये रगका और चारों पैर कुछ कालापन लिये हो, कुम्मत दिनाई। भंवर-भारेरे रगया घोडा, मुसी। हिना-सम्भवत. मेहदो रगका अश्व । सिंगारे-से ही सम्भवत. जायसीने खग कहा है (पद्मावत, ४९६१३) । परहग इसहालात (पृ. १८) के अनुसार दूधकी रगत मै समान सफेद रंग घोदेको सिंग कहते थे। नकुल कृत शालिहोत्र (पृ. ३७) मे सिगका वर्णन इस प्रकार है: दिन सेली तन पागुरो, होह इक मम अग। दूजो रंग न देखिये, तासी कहिये सिंग ॥ (३) उदिर--(स०-उन्दीर) जगली चूहे और लोमडीफे रगसे मिलता हुआ घोडा । सम्भवतः इसे ही सजार या सिंजाय भी कहते थे। संमुद-समन्द, बादामी रगका घोडा।। (४) नीर--नील, गोले रगमा घोडा । हरियाह-सम्भवतः अन्यत्र उल्लिसित हरियाँत (९८२) और हरियाह एक ही प्रकार घोडोंके लिए प्रयुक्त हुआ है। हरे रगरा घोरा, सन्जा । इस रगका घोडा अत्यन्त दुर्लभ है। (१) योर--स्टाइनगासकै पारसी कोप (पृ० २०६) के अनुसार दाइदके रंगका पांडा। परसनामा हाशिमीरा कहना है कि हिन्दके लोग चोरको शोण वर्ण कहते थे (पृ. १७)। गर्रया-(गर, गरी) स्वेव और राल रगकी पिचही यालीवाला घोडा। (३) पौन-पवन । याद-यायु । रास-बागडोर । (७) धायकोगते लोटा, किन्तु मील्मे महा दूरी नापनेकी इकाई। पाप-पानसे। ११३ (रोलपदम ७८) सिगते पाराने जगौ (अध्यारोहियाका वर्णन) कमि कसि चढ़े सभ असवारा । जियत न देसेउँ जिहि कर मारा॥१
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