१४३ विसहि बुझाये साने धरे । बेलग सौ सौ तरकस भरे ॥२ खरगर्हि बस चीजु के कया । रकत पियासी करहिं[न*]मया ॥३ बीर अस नर पखरहि चढ़े । तारू तरवा लोहै जडे ॥४ तातर अजवर आगे कसे । झरौं डोक सोनें रसे ॥५ जिंहकै हाक परहि नर, औ गज कीन्ह तरास ६ मरन सनेह हिये डर, इनके रहे न पास ॥७ टिप्पणी-(२) येरग–(पारसी शब्द) चौडे फ्ल अथवा बेलचेके आकारकी अनी का तीर । इतर पाठ बैलक-दो नोका वाला तीर, दुपकी तीर | सम्भवत यह गला काटनेर लिए प्रयोग होता था । (३) कपा-ठारीर। (६) जिकै-जिस ओर । हाक परहि-युस पढ़ते है। ११४ (रीलैण्ड्स ८२) मिफ्ते तीरदाजान गोयद (धनुर्धर-वर्णन) तिहि तुरि बैस गये धनुकारा । जिहिं पंथ पवान भुई अधारा ॥१ साज बिदो आतिस के गढ़े । देत न कोडा घोडहिं चढ़े ॥२ अबरें नर सिंह सँकरें मुंतहि । बनिज धरे सतुरहि पूतहिं ॥३ पानसार के ऑग उचाये । पाँसि गर काट रचि लाये ॥४ दई फॉख सर मूंठ सँचारहिं । बोलत बोल माँछ सँह मारहिं ॥५ जन्त्र लपौरी काढे हुत दाँप हँकार ।६ मरि-मरि काँटा बाँधे, तिहें पहँ कहाँ उवार ॥७ टिप्पणी-(३) अबर-निल । (6) फॉक-मधुमालती और पदमावतमे भी यह शब्द आया है। 'कुंवर पोक मर धरि रटवावा' (मधुमालती २६७५.) में इस टान्दका अथ माताप्रसाद गुप्तने 'पुका मिथ्या दिया है (पृ० ४१८), और 'पाप सर'को बिना पलका याण बताया है (पृ. २२५) जो अस • गत ही नहीं अत्यन्त हास्यास्पद भी है। पान क्रोरि एक मुत्र
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