पृष्ठ:चंदायन.djvu/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४५
 

चोटहिं महावत आँकुस गहें । वन कुंजरै डर राख न रहें ॥४ सावन मेघ ओनइ जनु रहे । पसरे फीनर परिखहिं चढ़े ॥५ चीजु माँत घन परे, परे छा] रन आइ ६ उठे खेह दर पौदर, सूरज गयउ लुकाइ ॥७ मूलपाठ-१-नास। टिप्पणी-(३) भोनइ-घिर । ११७ (बम्बई १३, रोटेण्ड्स ७०) रूने दुवम राव रूपचद क्सदे हिमार क्दन च योरुन आमदने महरा जग कर्दन उफ्तादन (दुसरे दिन राव रूपचन्दका दुगंकी और आना और महरका युद्ध के लिए बाहर निकलना) राउं रूपचन्द गढ होड बाजा । राई महर दर आपुन साजा ॥१ फिर सॅजो बाँठहि हथवासा । कॅबरू करूं पाउ हुलासा ॥२ चॉठ कहा अर तोंको आही । विथा मरसि उठु घर जाही ॥३ कँवरू तडपि साँड के काढ़ी । झेतस करी सभ देसै ठाढ़ी ॥४ पॉठे ताक खड[ग]गर्हिमारा | फिरै मामद धड गयउ उपारा॥५ दीठि भुलान सडग जो चमका, हाथ फिर हथ जोत' ।६ लाग सॉड बॉठा कर, कॅवरू गा भुइ लोट" ॥७ पाठान्तर-रीपन्स प्रति- शीर्षक-नभूदार गुपने हरदू पौजा व जन पदने चरू र आँछ र कुरत गुदने ऊ (दोनों सेनाओं का आमने सामने आना और वरू-बाँठा का युद्ध, चस्पा मारा जाना)। १-राह । २–यह शब्द छूटा है। ३-राम। ४-सजोइ । ५-- बाँठ । ६-आग। ७-है। ८-सय । ९-के। १०-लाग | ११-पिरै हाथ हत छूट । १२-सूत ।