पृष्ठ:चंदायन.djvu/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४६
 

१४६ ११८ (रोलैण्ड्स ७९) जगे दर्दने पँवरू वा बाँटा व गुप्तः शुदने धंवरू (धंवरू-बाटा युद्ध) धुंवरू देसा कॅवरू परा । रोहतास जैसे परजरा ॥१ हाथ सॉग मारसि तस आई । फिरै लाग धड़ गयउ चुकाई ॥२. फुनि कादसि विजुरी तरवारा । डाक दड के हनसि कपारा ॥३ टूटि साँड तातर सथ धावा । बॉठ कहा ही इह पै घावा ॥४ फुनि लेंहति कादसि तरवानी । तोहुत वॉठा चला परानी ॥५ खेदत उदका धेवरू, परा दार सॅहराइ ।६ पलटि यॉठ जो देखा, तो बहुरि मारसि आइ॥७ टिप्पणी--(२) साँग--एक प्रकारका भाल जो यईसे छोटा अर्थात् ७-८ फुट रुग्या होता है और उसका सिरा दाई पुट लम्या और पतला होता है। इसरा दण्ड भी लोहेना होता है। (अर्विन, आर्मी आव द इण्डियन मुगल्स) (६) सेदन-पोछा करते हुए । उदका-टोकर साकर गिरा । ११९ (रीरेण्ड्म ८०) शादियाना उदन दर एकरे राव रूपचन्द अज हिरवते पोज __(राय रूपचन्दकी सेनामें विजयोल्गस) ताजी तार दोउ जन मारे । और कुँचर महरे के हारे ॥१ दोउ आने वाधिं खपाई । पॉयक बैठे करहिं बड़ाई ॥२ रकत लह ले सरवर भरा । एको कुंवर न आगे मरा ॥३ जिन्ह देसा तिन्ह गयउ पराना । डर सहँ कोउ न कर पयाना ॥४ जे महरै उनार जियाये । सगर वीर न काजें आये ॥५ भाट कहा महर सों, तो ना वह वीर ६ वेग हॅकार पठावदु, लोरक पावनपीर ॥७