पृष्ठ:चंदायन.djvu/१५७

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१२० (रोलैण्ड्स ) आमदन भट बर लरक अज फिरस्तादन मदर (महरके भेजे भाटका लोरकके पास भाना) भाट गुसाँई तुम्ह गढ धावसि । आगे दड लोरक लै आवसि ॥१ चढ तुरंग भाट दौराना । लोरक जाइ जो आभर पावा ॥२ कहवाँ भाट घोड दौरायहु । काकर पठये कसा तुम्ह आयहु ॥३ लोर महर तुम्ह ग्रेग हॅकारी । कॅवरू बॅवरू चॉठे मारी ॥४ जारव गोवर लाग मोहारी । लइ अब चॉद होइ अँधियारी ॥५ उठा लोर सुन मॉग कुमारी, महर भया अवसान ।६ आज पाँठ रन मारौं, देसउँ राइ परान ७ दिप्पणी-(५) जारप-जल्ला दूंगा। (६) अवसान-हताश, परेशान । (रोलेण्ड्स ३७ , यम्बई १३) दुरूने खाना रफ्तने लोरक व मुस्तहद शुदन बर जप (लोरकका युद्ध के लिए सुसज्जित होना) घर गा लोरक डाँक सॅभारी । ओडन खॉड लीन्ह तत्तारी ॥१ चाँध रकावल खसि'सर पागा । पहिरसि तारसार कर ऑगा ॥२ घनसहरी कर खीच बधागा । पीत काट सनाह मदाना ॥३ तातर जिंहजन लीन्ह उचाई । लोरक मड़ दीन्हि औधाई ॥४ सारंग एक जुगत कर चढा । जनु अरजुन कहें रावन' कहा ॥५ फिर सँजोइ कटारें लीन्ह, बाँध चला तरवारि ।६ रकत पियास खॉड लोर कर, दौरा जीम पसारि ॥७ पाठान्तर- चम्बइ प्रति- शार्पक-आमदने लोरव दर खाना व सारख्ताशुदन बराय जग व पोगीदन अल्हा व बस्तने अलहा (घर आर युद्धकी तैयारी करना और शास्त्राबसे सुसज्जित होना)