पृष्ठ:चंदायन.djvu/१५९

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पहिलहिं अजयी दोख अनावा । मिस कै बरका दाँत कँपावा ॥३ घात काट कहसि केर ओ फरी । घिरै लै योडी तर धरी ॥४ अंग मूंड अस करे पुकारा । कौन मीचु दीन्हें करतारा ॥५ लाज लाग महरै मुँह, अवहीं राउ कह आउ ।६ खाँड मीचु बनायउँ, दड भल पछताउ ॥७ पाठान्तर-बम्बई प्रति- शीर्षक-राजी शुदने सेलिन व इजाजत दादने मैंना, बिदअ क्दने लोरक बसानये राव रफ्तन (खोलिनका राजी होना, मैनाका अनुमति देना और लोरकका रावने यहाँ जाना) १--राइ । २-अजबी । ३-अपाया | ४--जमवइ । टिप्पणी-(२) अजयी-लोक कथाओंके अनुसार अजयो लोरकका गुरु था। यहाँ उसके सम्बन्धमें स्पष्ट कुछ नहीं कहा गया है, परतु प्रसगसे लोक कथाओं की बात ठीक जान पडती है । १२५ (रीरेण्ड्स ८६ , यम्बई ) नमूदने लोरक रा अजयी तरीके जग (जयी का युद्ध कौशल पताना) अजयी कर घरकै बतलाओं' । यहै बहुत तुम्ह हुत'सिधि पाओं॥१ मैं लोरक तहियाँ मिधि दीन्हें । हाथ भिरै तुम्हजहियाँ लीन्हें ॥२ अब चुधि देउँ सुनसु तूं मोरी । ओडन देह न देरी तोरी ॥३ फिरै तेग भुइँ पाउ उचावहुँ । बॉह लुकाइ सडग चमकावडे ॥४ पाट गहत जिन भूलै दीठी । पाउ न देख अखरहिं पीठी ॥५ खाल उधारै खेदहुँ, सीस भरे जिउ जाइ ।६ खडग भरहर मारसु, जइसे बन अरराइ ।।७ पाठान्तर-यम्बई प्रति । शीपक-विदआ कर्दने लोरफ मर अजयो रा वहुनरहाये जग आमोरप्तने अजयी मर लोरक रा (लोरकका अजयीसे विदा माँगना और अजयीका उसको युद्ध कौशल रताना)