पृष्ठ:चंदायन.djvu/१६८

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२५८ १४० (सैपड्स ९९) जग कर्दने लोक या राव व हजीमत खुदने राव (लोरक और रायका युद्ध : रावको हार) पलटा लोर संग जस गाजा । कल साँड राजा सर बाजा ॥१ खड़ग तार लोरक के बाजी I पासर काट राउ गा भाजी ॥२ बिजली ऑने धरसि महराजू ! मारसि सिरिचन्द भी भुइँराज् ॥३ वीरराज मारसि औ फिरे । यजर आग साँडे परजरे ॥४ मार सकति लै रकत बहाये । राहग झार लोहे बुझाये ॥५ आगें दइ लिहसि दर आपुन, हाक चला तस टॉड ।६ लौटा बाँठ लोर [---], सपन उभारस सॉड ॥८ टिप्पणी-(५) सति (स० नि)-तीन नोगोयाल निशूल्ये दगा छोटा भाग। १४१ (रीरेण्ट्स १०) उस्तादने बाँठा दर मैदान व हजीमा सुदने राय रूपचन्द अठाका गिरना : रान रूपचन्दका पराजय उभर गाँठ लोरक तस मारा । परा घोर नर दयो उबारा ॥१ दूसर खाँड जो पैठ सनाहाँ । अँजी टूटि उपरि गइ याहाँ ॥२ उठा लोर सकति कर गहे । मारसि पलक पाखर रहे ॥३ उभरे भीर दोउ परवण्डा । अगिन पर बर वाजत सण्डा ॥४ गरह मँजीड बॉठ ससि परा । हिउँ पाउ दइ लोरक धरा ॥५ धरमि तार सरवारि कण्ठहुत, काट चला ले मुण्ड १६ भाजि चला डर राज रूपचंद, देस पड़ा धड़ रुण्ड ॥७ टिप्पणी-(४) बरबादा (हरियण्ड)-पनपान, प्रचण्ड, दुधम् ।