१६५ १५१ (रोलैण्ड्स १.९) कबूल कर्दने महर सुखुने चाँदा व इस्तेदाद दादने हमें सल्क रा (चाँदाके अनुरोधपर ज्योनारका आयोजन ) चॉद बचन हौं कहवाँ पावउँ । सब गोचर औ देम जिवावउँ ॥१ महरे नाउहिं कहा बुलाई । घर घर गोरर नोतहु जाई ॥२ काल्हि महर घरै जेवनारा । चार बूढ़ सर झार हकारा ॥३ सुनिकै नाउ दहा दिसि गये । तैतीसों पार सय नोता लिये ॥४ सोंट सोंट सभ नोता झारी । अथवाँ सुरुज परी अँधियारी ॥५ पारथ पठये अहेरें, औं पारी पनवार ।६ पिछले रातआयेबहुरि, नाऊ सहदेव (दुआर) ॥७ मूलपाट-(७) महर। टिप्पणी-(३) झार-एक एक करके । (४) दश-(फारमी) दस | पार-पाद, पति, समूह, यहाँ जातिसे तात्पर्य है। (६) पारध-शिकारी । पठये-भेजा। पारी-पत्तल बनानेवाली जाति । पनवार-पत्तल। (रीलैण्ड्स .) आरर्दने सैयादाने हैवानाते हर जिन्सी ( अहरियोंका अहेर लेकर आना) दिन मा पारध आह तुलाने । अगनित मिरग जियत घर आने ॥१ बहुतै रोझ गेंदना न गिने । चीतर झाँस जॉहि न गिने ॥२ गीन पुछारि औ लोखरा । ससा लॅपकनों पर एक सैकरा*] ॥३ मेहा सहस मार के टॉगे । चार पाँच से चकरा माँगे ॥४ औ साउन मह बनडल मारे । सँघर पार को कह न (पारे) ॥५
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