पृष्ठ:चंदायन.djvu/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१६४
 

१६४ कहु सोपात जिहें तूं अस भई । काह लाग भर अंगर गई ॥३ चाँद पिरस्पत के पाँ परी । काल्हि सुरुज देसउँ एक घरी ॥४ कै वह मोरे घरे बुलाबहु । 2 में है बो (हिंग) लाबहु ॥५ ___चाँद गुनित में देखा, सुरुज मॅदिर जिहें आउ ।६ कर महर सेंउ विनती, गोवर नोत जिवाँउ ॥७ मूलपाठ-(०) दन्द । गापका मरकर हर सानते यह पाठ है। टिप्पणी-(.) घरी-धरी । ४० मिन वा एक घरी हाती है । (४) काहि करू। ()-या तो । घोफे-स। १५० (दिन १०८) रपदन चाँदा बर महर व दात मेहमानिये रुक कदन (चाँदके महरसे जन भोन करना अनुरोध करना) निरस्पत यचन चाँद चित धरा । हीउर पूरि खाँड घिउ भरा ॥१ मुनते पचन महर पहँ गयी । जाई ठादि आग होइ मयी ॥र एक ईछ ईली में पीता । तोतुम्ह राउ रूपचन्ट जीता ॥३ देवहिं पूजा फूल चढाऊँ । पाय लाग कर जोड़ मनाऊँ ॥४ पिता मोर जो रन जित आइह । देस लोग तम नोत जिंबाह ।।५ पर वह वाव जो कीन्हेउँ, अरस होइ सो नारि ६ राइ सडग रन जीत, आयटु क्टक सँघारि ॥७ टिप्पणी--(१) होउर-हृदय । (२) रटि-सटा। (६) ई-इन्छ । इंजीन्म किया, सरपरिवा। (४) भारा-आपेगा । जिवाँइह भोजन करायेगा। (६) पाद-यवन ।