पृष्ठ:चंदायन.djvu/१७८

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१६४ १५६ (रीलैण्ड्म १४) सिफ्त समियाते हर जिन्सी गोयद (तरकारीश वर्णन) चाचर पापर गूंज उचाये । भॉटा टेंडस सोंधि तराये ॥१ कल्ये तेल करेला तरे । कुम्हडा भुंज साथ एक धरे ॥२ सेससा परवर कुंटरै अही। घी तुरई अरुई कहीं ॥३ गोटी पोट धोड पकाई । चूका पालक औ चौलाई ॥४ लौआ चिचिंडा बहु तोरई। सेंसा सेव भार दस भई ॥५ गंगल चुड सौंफ औ, सोई मेथि पकान ६ राधे युसुभ कॅदुरियाँ, काहे फल सन्धान ॥७ टिप्पणी-(१) पापर-बार पाठ भी सम्भव है। वापर चार आठेकी मालपुएवं ढगकी मिगई है। अलीगढ क्षेत्रम यह वारा या यारीरे नामसे प्रसिद्ध है । भूनने प्रसगसे पापर (स० पर्पर>प्रा. पप्पड> पापड >पापर) पाठ ही रुगत है । मुनीतियमार चाटुनके अनुसार पापड शब्दवे मूल्म तमिल शब्द पर्प (दाल) है। यह आजक्र उर्द या मुंगसरी दाल, चावल, साबूदाना, आदिको पीसर मसाला मिलाकर बनाया जाता है और भून अथवा तत्पर साया जाता है। भाँटा~भग, वैगन । यह प्राय साल भर होने वाली तरकारी है। भारतकी प्राचीन तरसारियों में इसकी गणनायी जा सकती है। वाणने हर्षचरितमे इममा 'बगर' नामसे उप किया है। दम-देडस, टिण्डा। (२) करेग-यह काफी प्रसिद्ध तसारी है। पदी होने कारण प्राय इसी तरतरी मरगारे तेल्म तलकर स्नायी जाती हैं। कये तेल- कर तेल, सरोका तेल | पाहदा-पा, गगापल, पाशीपल, माता, दुया, उपमाष्ट। इसवी चेल होनी है और यह गर्मी और परमातम होती है।थाकारमें यह रसूजयी तरह और रगर्म पोग होता है। पका हुआ कुम्हा गहुत दिनों तक राराम नहीं होता। (३) खेपमा-परेलेको जातिकी छाटे आकारको तरकारी । इसे हाँसीरे