पृष्ठ:चंदायन.djvu/१९९

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१८९ अहि जाइ धरि यॉह उँचाबहु । विरह बभूत मनपानि पियावहु ॥३ अस जनि कहि चॉद पठायउँ । पछत कहसि चलि हों आयउँ ॥४ गडआ पानि नगर खेड लेह । के खेडवान बिरस्पत देहे ॥५ मुस भूत औ कथा, अस कहु धरहु उतार १६ दई भयउ तुम्ह परसॉन, पूजहिं आस तुम्हार ॥७ टिप्पणी-(१) ते-तूने । मोसउँ-~-मुझरो।। (२) मुगुति-( स० भुक्ति)-भोजन । जुगुति-युत्ति । जोग-योग्य । देतों-देती। (३) अहि-अभी । उचाबहु-उठाओ। धरि--पक्प पर । यभूत- भस्म । (४) अनि-मत । (५) गदुआ-पानी रसने का पात्र बँटवान-पॉडका पानी, शरनत । (७) परसॉन-प्रसन्न। १८९ (रीरेण्ट्य 1४५) शकरो बगदादे फिरस्तादने चाँदा निरस्सत रा बर लोक दर चुतसाना (चाँदका विररतको रोरकके पास खाँड और पान देकर भेजना ) चाँद साँड दई पान विसारी । सुरंग चिरस्पत म. सिधारी ॥१ गौन चिरस्पत म. पैठी । जहाँ चाँद मुरून भइ दीठी २ पिरस्पत दसन बीजु चमकाये । सॅवर रक्त नैन झर लाये ॥३ विरस्पन पाय सुरुज ले रहा । तुम जो चॉद मिरावन कहा ॥४ जागत रहे। जो नींद गवानी । अन न रूच औ भाइ न पानी ॥५ हो जो चाँद ले आयउँ, कीस मढ़ि परकास १६ समर नीदरो सूते, गई हिंडोर जिंह पास ७ टिप्पणी-(२) जहवा-जिम जगह । दीटी देखा देगी। (४) मिरावन-गिलाप करानेकी बात। .