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पृष्ठ:चंदायन.djvu/१९८

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१८८ लोर सुरुज यह निरमल, चहूँ भुवन उजियार ६ चाँद आहि धनि ताकर, सूरुज नॉह हमार ॥७ टिप्पणी-(१) सरभर-- समानता, यराबरी । (४) पैसि-पैठ कर । कीनसि-विया । थान-स्थान । अन्त---अन्य, पिसी दुसरेको । (५) धी-पत्नी । नाह-पति । १८७ (रेण्ड्स १४३) याज नमृन्ने पिरस्पत रिकायते लोरर पेशे चाँदा (पिरस्पतरा घाँदासे रोरक्के प्रेमकी बात कहना) वह सोमहर धिय तोर भिसारी । भीस लेइ जो देसु हॅकारी ॥१ दरसन राता भयउ तिह जोगी । भीस न माँगपुरुख है भोगी ॥२ तिहि कारन मुस भसम चढावा । वचन देहि तोहि सिध पावा ॥३ तोर रम कर आस पियासा । नित नहि आछै लै मरि सासा ॥४ चाँद वचन एक सुनु तुम्ह मोरा । तूं औखद वह रोगिया तोरा ॥५ हस्त चढा दिसरायउँ, पुनि आने जेउनार ६ सोड मदि महें, देसत गा बिसँभार १७ टिप्पणी--(१) जो-यदि । देमु-दो । हकारी-घुगर । (६) आनिउँ-हे आई। (७) गा--गया। १८८ (रीरेण्टम १४५) आसोस पदंगे चाँदा आ वेहोगी लोरफ दर भुतलाना (मन्दिरमें तोरसे मूति होने पर घाँदाका रोद) मदि मंदिर जो लोरक अहा । ते न विरस्पत मोंसेउँ कहा ॥१ भुगुति जुगुति तिह जोग देतों । पिरत मिरे बचन सुन सेतों ॥२