- १९८ (रीरेण्ड्स ५१) बुरदने विरस्पत होरक रा व नमूदने राहे क्स चाँदा (बिरस्पता चाँदके धोराहरका राम्ना दिसराना) जो सो वचन विरस्पत कहा । लोर पीर हिवं के गहा ॥१ मन रहँसा कहु आज मेरावा । जिह लग सूर सरग चढ़ धावा ॥२ पिरह झार अजमृत घुमलानॉ । रहँसा कॅवल भात रिहसाना ||३ सो महि वाट आइ दिसराउ । जिहें चढ़ि जाउँ चाँद कह ठाउ ।।४ धनि मोरात जिहिं सजन चुलाह | चाँद सुरुज दोड गरन कराहें ॥५ चली चिरस्पत सरगर्हि, सूरुज गोहन लाइ ६ जहाँ चाँद निनि निसरड, गई सो पँच दिखराइ ॥७ टिप्पणी-(७) विमपई-विश्राम करती है। १९९ (रीरेण्ड्स १५५) गरीदने सेरक अपरेशमे साम राय माख्तने रमन्द (कमन्द पनानेके लिए लोरकका पाट खरीदना) , पाट वधनियाँ लोर विमाहा । परत सात गुन कीत चराहा ॥१ बनें माँझ लोरक तस तानॉ । जानु सरग कहँ रची रिवाना र मुस भोंग हुत जनु धर काढ़ा । हाथ तीस एक. आछै ठाड़ा ॥३ अपुरी मार गैर तिहिं लाई । जिहिं सरि परि तिहँ पैंत न जाई॥४ सॅट खट लाग फाँद सॅचारी । चीर पाउजिहिं घरि घर सँभारी।।५ देखि पछि अम मैंना, परहा करियहु काह ।६ परी भैइस अटमारक, चाँधे चाहत आह ॥७ टिप्पणी- पिमाहा-गरीदा | सराहा-परहा, मेटी रसग । (४) मारहा । (५) भैइम-ग।
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