१९५ (रोलैण्ड्स १५६) रवान शुदने लोरक दर शवे तरीका व वर शिगाल मुए कस चाँदा (अंधेरी रातमें लोरकका चाँदके धौराहरको ओर जाना ) | छठ भादों निमि भइ अँधियारी । नैन न मुझे बॉह पसारी ॥१ चला बीर घरहा गर लावा । जियकै पर दूसरहिं बुला ॥२ खिन गरजे फिर दइउ बरीसा । सोर भरे जर बाट न दीसा ॥३ दादुर ररहि बीजु चमकाई । एइस न जानु कौन दिसि जाई॥४ मसइर दीस झरोसें पामा । लोर जानु नखत परमासा ॥५ चित भुलान निसॅभारा, मंदिर कौन दिसि आह ।६ देवस होत जो चित धरॉ, उतर कहउँ तो काह ॥७ टिप्पणी--(३) दइउ-दैव, रादल । खोर---गॉवरा कच्चा रास्ता । जा-जल | (४) दादुर-मेढक । ररहि-टर टर्र करते हैं । अइस-ऐसा । (७) उतर-उत्तर दिशा। २०१ (रीलैण्ड्म १५७) दरख्शीदने वर्क व शिनाख्तने लोरक सानये चाँदा (बिजली चमकना और शोरकका चाँदका आवास पहचानना ) काधा लौ भा उजियारा । चिर जिया लौर मंदिर मनस्यारा ॥१ सॅवरसि भीम केर पोमाऊ । मेलसि परह रोपि धरि पाऊ ॥२ परा यरह तो चॉदा जागी । अपुरी देसि चौसण्डे लागी ॥३ झाँता चॉद लोर तर आग ॲकुरी काहि बरह झटकाया ॥४ जें जेंउ मेलि मंदिर तर जाई। हँसि हॅसि चॉदा दइ झटकाई ॥५ एक बार परा तो, मेलों परह फिराइ १६ काटों ठौर सहस एफ, जो न मंदिर पर जाइ ॥७ टिप्पणी--(१) धा-चमका । लौके-विजली ।
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