पृष्ठ:चंदायन.djvu/२०७

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रहा यरह लोरक धरि तानां । माल जुगुति पौ धरसि पनानाँ ॥३ वीर परान परन को काहा । डिन बॉस चढत जनु आहा ॥४ चाँदें देखि लोर गा आई । सेज सभर होइ पसरी जाई ॥५ चढा लोर धौराहर, देससि बिसम अवाम ।६ मिरग नियर धर औहट, रॉध न केऊ पास ॥७ मूलपाठ-२-तो तो। टिप्पणी-(१) बेर--देर । भवा-हुआ ! यह-लेकिन । (४) मेदिन-नटी। (५) पसरी-लेटी। (७) निपर-समान, की तरह । धर औहट-आहट लिया। केऊ- कोई भी। २०४ (रीलेण्ड्स 10) बर यालाय कस ईस्तादने लोरक व दोदने तमाशाये रख्वाबगाहे चाँदा व खुपस्तने कनीजगान (लोरकका चाँका शयनागार देखना दासियोंका घेखबर सोते रहना) लोरक लेत खॉम परछाँही । सो देससि जो देसा नाही ॥१ दिया सात तर खॉौं बरहीं । जगमक रतन पदारथ करही [[२ हीरन हार धर तस जोती । सरग नसत जनु यहठे मोती ॥३ चेरी सोइ जो पहरे केती । जानु अफास कचपची एती ॥४ घिसाड चॉद सपूरन तहाँ । मानिक जोत तराई जहाँ ।।५ रैन मॉझ जस दिन भा, नाही वीर बुराउ ।६ चदि लोर सो देसा, जो न देखहुत काउ १७ टिप्पणी-(२) सात-'साठ' पाठ भी सम्भव है। (४) कचपी--कृतिका नशन, आकाश में पृचंकी ओर दिसाई देनेवाले छोटे तारोंरा समूह । (६) भा हुआ।