पृष्ठ:चंदायन.djvu/२०८

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२०५ (रोल्ण्ड्स १६, पंजाब [१०] ) सिप ते नक्दापारी चौसडी (रूण्डीकी चित्रकारी धान) झार चौखण्डी ईगुर पानी । चित्र उरेह कीन्ह सुनयानी ॥१ लंक उरेह भभीसन रेहा । सॅचे मान दनगर के देहा ॥२ सीता हरन राम संग्राऊँ। दुर पांटो पुस्खेत क ठॉऊँ ॥३ करपा' चोर पोदया जुआरू । अजयी नगरी अगिया वैतारू ॥४ साँझी पन्दार रह लावा । चकावह अरिहँ उचावा ॥५ सीह-सॅदूर मिरघ मिरघारन आनों भाँत ।६ कथा-काच परलोक निसारभ, लिख लाँची जिहँ पाँत ॥७ पाठान्तर- पर प्रति-- शर्पिद-पट गरा है। १-पी पति अस्पष्ट है, पदा नहीं जाता। २-खडखडा (१)। ३-पति ६.७ अस्पष्ट हैं, पढे नहीं जाते। टिप्पणी-(१) मार-पोतकर, लगाकर । गुर-(10 हिंगुल>गुल>गुर> रंतुर) एक प्रकारका राल रग डिले अनय, पारद व्या गन्धर घाट- कर बनाते हैं। बियाँ इसे अपना मांग भरने लिए सिन्दूरवी तरह काम लाती हैं। यानी-(स० वर्णिकग। सुनवानी-सोनेका रेसवन । गुरी पृष्ट भमि पर सोने रेखावित चित्र बौदादी- पन्द्रहवीं शताब्दी में काफी प्रचलित थे और उनये नमूने बड़ी मात्रा चिरित जैन अन्यों में देखनेको मिलते हैं। (ग) रंग-रूपा, रावणका निवासस्थान । भभीखन-विभोला रेहा- रेखावित रिया । दसगर-दास्वन्ध, रावण ! (३)दुर-दुर्योधन । कुरत-युरक्षेन, उहाँ महाभारत हुआ था। (४) म पनिमें लोक्फयाओंमें प्रचलित पात्र डान पटते हैं विन्तु उनकी पदचान हम नहीं कर सरे । भगिपातर (अगिया पैताल)- विक्रमादित्यको सिद्ध दो देवाला से एकः । (६) मिरपादन-मूगारप्य, शियारगाह । भानी--अनेर प्रारणे ।