पृष्ठ:चंदायन.djvu/२३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२६
 

२२६ तिहि जस तिरी न देखेउ, कोन खोर सो आइ ।६ के सगाइ काह सों, अपजस सोइ (चढ़ाइ) ॥७ मूलपाठ-(७) चढाउ। टिप्पणी--(१) सुरेहुत-देवता निकट । शुद्धी-साली । (२) वेदन-वेदी, हिन्दी, टीका । (४) सोर-~गाँवरा पचा रास्ता, गली । २५७ (रीरेण्ड्स २०५ : पजाय [प]) जवान दादने मैना मर चाँदा रा (बाँदको भेनाका उत्तर) सुनु न चॉद एक उतर हमारा । नॉह कीन्ह तिहि परासभारां ॥१ नाह लीन्ह महें परा सभारू । काकहि करिहाँ अरप सिंगारू ॥२ हँसि हँसि बात कही गिराई । तिल एक ते न देख लजाई ॥३ तिह ससोट तिह दोस नै आवहि । सती ते परपुरुख रॉवहिं ॥४ अब छिनार और किंह कहा । सो कम चॉद नहि डा रहाँ ॥५ गा सुहाग सुख निदरा, चॉद नाँह जो लीन्ह ।६ सोक संताप विरह दुख, सेज पोर मह दीन्ह ॥७ पाठान्तर-पग प्रति- मीन-जराय दादने मना] चाँदा रा बैंपियत दर लरक या चाँदा याज नमृदन (मैनावा चाँदयो उत्तर देना और लोरक चाँदरं प्रेमको प्रस्ट परना)। १-मुन म चाँदा स्तर हमारा | २--गहिरजमोंगा निसि गै उपियारा । ३--नाद लीन्ह मह उभारू । ५-इतउप । ५-यहिराई । ६-सग

  • देय न त रजाई। ७-रातो रूप पर पुरुग रयाहि । ८–यो क्स

जाँदा दावि न राम!