पृष्ठ:चंदायन.djvu/२३४

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- २२५ टिप्पणी-(४) देउ करस मह घिरत भराऊँ- मनोरथ पूण हाने निमित्त दूध, घी अथवा तीर्थ उल्से दव करुश भरनकी मनौती ( मान्यता ) प्राय स्त्रियाँ मानती हैं। २५५ (रीरंण्ड्म २०२) आमदने मैना व मुनिदयान खुद दर बुतसाना व परस्तीदने देव रा (मैनाका सहलियों के साथ मदिर आना और पूजा करना) चढ़ी पालकी मैना रानी । ससी सात सो आइ तुलानी ॥१ सोक संताप विरह के जारी । किसन बरन मुस रीसा नारी ॥२ मुर सून (अरु) सीस अति रूखा । मुसा कंवल कंदरप झर सूरसा ॥३ बहुल उदंग उचाट संतायी । पूजा देउ चढ़ायसु आयी ॥४ अखत फल दीन्हि कर काही । देउ परातर उतर भइ ठाडी १५ अहो देउ तिह कहा यह, जो वर परकहं राउ ।६ अपने सेज छाडि निस अनतै, फिर फिर धाउ ॥७ मूल पाठ (३) अमर । टिप्पणी- (३) मुर-मूंड, सर । २५६ (रीरेण्ड्स २०३) पुरसीदने चाँदा मर मैना रा अज शिवस्तगी हाले ऊ (चाँदका #नास उदासीका कारण पूछना) हँस के चॉदे मैंनॉ पूछी । के सुरैहुत आयहु छछी ॥१ अति दो मन औ साँवर पाने । सीस न बेदन अधर न पाने ॥२ कै साई निसि सेज न आपइ । तिहिं संताप दुरा रोड यहाड ॥३ कै तिह नारि आह बुध थोरी । तिह अवगुन पिउ लानड सोरी ॥४ कै तुम्ह करटुन अरप सिंगारू । के सुहाग हे हुँन पीरू ॥५